किताब: राजा जो कंचे खेलता था
द किंग हू प्लेयड मारबल का हिन्दी अनुवाद राजा जो कंचे खेलता था चौंकाने वाला शीर्षक है। हालांकि मात्र किताब का टाइटल देखकर ऐसा लगता है कि यह कोई पारम्परिक राजा-रानी की कहानी होगी। बच्चों से सीधे तौर पर इस कहानी का कोई वास्ता क्या ही होगा। ऐसा भी लग सकता है कि या तो कोई मूर्ख राजा होगा या सनकी या फिर तुगलकी फरमान सुनाने वाला राजा होगा। ऐसा भी लग सकता है कि सामंती सोच पर केन्द्रित कहानी होगी। ऐसा भी लग सकता है कि आदर्शवादी राजा या किसी राजा को महान बताने वाली कहानी होगी। लेकिन ऐसा इस कहानी में नहीं है।
यह किताब आम तौर पर नौ से ग्यारह साल के पाठकों के लिए सूचीबद्ध की गई है। लगभग चार हजार पाँच सौ शब्दों की यह कहानी तीस पन्नों की किताब में शामिल की गई है। पुस्तक का आकार सामान्य से बड़ा है। चित्र राजाओं के देशकाल और वातावरण को ही प्रतिबिम्बित करते हैं। आकर्षक हैं। आज की नई पीढ़ी को यह समझने में सहायता करते हैं कि कभी राजा-प्रजा का भी समय हुआ करता था।


बहरहाल इस किताब की कहानी पर बात की जानी चाहिए। एक युवा राजा था जो बीमार है और उसका अंत समय आ गया होता है। इकलौता राजकुमार जो अभी नौ साल का भी नहीं है। दस्तूरानुसार नेक दिल प्रधानमंत्री के संरक्षण में नौ साल के बच्चे को राजा बना दिया जाता है जो अभी राजा होने का मतलब भी नहीं जानता था। खैर, प्रधानमंत्री हर संभव कोशिश करता है कि किसी तरह नन्हे राजा को राजा के दायित्व से परिचित करा दिया जाए। वहीं नन्हा राजा कंचे खेलने का शौकीन था। सोने,चांदी और हाथी दांत की पेटियों और संदूकचियों में कंचे ही कंचे भरे हुए थे। नन्हा राजा कंचों से यहाँ-वहाँ खेलता रहता। प्रधानमंत्री परेशान था। वह कई बार महारानी को सलाह दे चुका था कि राजा को कंचों से दूर रहना चाहिए। महारानी कहती कि वह अभी बच्चा है। थोड़ा बड़ा होगा तो खुद बदल जाएगा। लेकिन देशभक्त प्रधानमंत्री एक दिन इरादतन नन्हे राजकुमार को घेर लेता है। जब प्रधानमंत्री नन्हे राजा से यह कहता है कि तुम्हें गंभीर होना चाहिए। प्रजा पर ध्यान देना चाहिए। तब नन्हा राजा कहता है कि मैं वही करूंगा जो आप कहेंगे। बस मैं चाहता हूं कि कोई मेरे साथ खेले।


प्रधानमंत्री खुश हो जाता है। वह सोचता है कि यही एक रास्ता है जब बच्चे में बदलाव लाया जा सकता है। अपरिपक्व और कोमल दिमाग पर प्रभाव डाला जा सकता है। प्रधानमंत्री का एक भतीजा है जो नन्हे राजकुमार की उम्र का है। तुम दोनों महल में खेल सकते हो। उसे भी कंचे खेलना पसंद है।
प्रधानमंत्री को उम्मीद बंधती है कि इस नई दोस्ती का इस्तेमाल करेगा। इस बहाने नन्हे राजा को योग्य शासक बनाने के लिए प्रशिक्षित करेगा। प्रधानमंत्री का भतीजा आता है और दोनों अब महल में चारों तरफ दौड़ते-भागते, बातें करते और खूब कंचे खेलते।
वहीं महल से बाहर पड़ोसी राज्य मवाना के राजा को छोटे से राज्य पर आक्रमण करने का मौका मिल जाता है। मवाना में आपातकाल की घोषणा हो जाती है। घुड़सवारों के पीछे सैकड़ों हाथी चिंघाड़ते हुए पीछे पैदल सेना के साथ युद्ध करने चल पड़ती है। आधी रात का समय है। प्रधानमंत्री को जगाया जाता है। रानी से मिलकर तय होता है कि बिना शर्त हार माननी होगी। एक दल मवाना के राजा के पास युद्ध स्थल पर भेजा जाता है। बिना युद्ध किए युद्ध समाप्त हो जाता है। मवाना का प्रधान सेनापति घोड़े पर चढ़कर नन्हे राजा के महल की ओर जाता है। वह महल में घुसता है कहीं कोई स्वागत के लिए नहीं मिलता। अचानक उसे दो बच्चों के खेलने की आवाज़ंे सुनाई देती हैं। नन्हा राजा अपने प्रधानमंत्री के भतीजे के साथ कंचे खेल रहा था।
किताब से एक अंश-
‘‘तुम कौन हो?’’ छोटे बच्चे ने पूछा जबकि एक कंचा अब भी उसकी उंगलियों में था। अपने आश्चर्य के बावजूद उस आदमी ने जवाब दियाः ‘‘मैं मवाना के राजा का प्रधान सेनापति हूं।’’ उसने आगे कहा,‘‘मैं महल पर कब्जा करने के लिए आया हूं।’’
‘‘महल पर कब्जा?’’ लड़का चिल्लाया। ‘‘किसलिए?’’
‘‘हम लोगों ने यह राज्य जीत लिया है।’’ प्रधान सेनापति ने कहा,‘‘मुझे आदेश दिया गया है कि मैं इस महल पर कब्जा करूं और राजा को गिरफ्तार कर लूं।’’
‘‘राजा तो मैं ही हूं।’’ लड़का हंसा। ‘‘लेकिन अभी तो तुम देख ही रहे हो कि मैं व्यस्त हूं। मैं कंचे खेल रहा हूं। तुम अभी मुझे परेशान नहीं कर सकते। अगर तुम चाहो तो खेल के खत्म होने के बाद मुझे गिरफ्तार कर सकते हो।’’
यह सुनकर प्रधान सेनापति सकपका जाता है। नन्हे राजा की निर्भीकता,सरलता और भोलेपन के बाद वह कहता है कि ऐसा ही होगा। बाद में वह भी आह्वान पर उनके साथ खेलने लग जाता है। बच्चों के साथ वह मगन हो जाता है। भूल जाता है कि उसे किस आदेश का पालन करना था। वहीं युद्धस्थल पर मवाना के राजा का धैर्य जवाब दे जाता है। अब वह स्वयं घोड़े पर सवार महल की ओर चल पड़ता है।


मवाना का राजा जब महल में घुसता है तो दंग रह जाता है। दो बच्चों के साथ उसका प्रधान सेनापति कंचे खेल रहा है। वह अपने सेनापति को डांटता है। खेल रुक जाता है। नन्हा राजा भी मवाना के राजा को कहता है कि तुम कौन होते हो हमारे खेल में रुकावट डालने वाले। जब उसे पता चलता है कि वह राजा है तब भी नन्हा राजा कहता है कि तुम एक राजा हो सकते हो फिर भी खेल में बाधा डालने का अधिकार नहीं है।


राजा को वह नन्हा कहता है कि मुकुट उतारो तुम पूरे जोकर लगते हो। उसे खेलने के लिए कहता है। राजा खेलने लग जाता है। रात के बाद सुबह और अब दूसरे दिन का सूर्य अस्त होने को है। युद्धस्थल पर मवाना की सेना भी अब राजमहल की ओर चल पड़ती है।


एक अंश किताब से-
‘‘मुझे एक शक्तिशाली योद्धा माना जाता है और मैं अपनी बहादुरी के लिए बहुत प्रसिद्ध हूं।’’
इस पर लड़के ने कहा,‘‘लड़ाइयां जीतने के लिए? तुम मजाक कर रहे हो। लड़ाई जीतना बहादुरी कैसे हो सकती है? मैं लड़ाई के बारे में जानता हूं।….लोग लड़ाई में मारे जाते हैं। आदमी, औरतें, बच्चे…सब मारे जाते हैं और उनके घर बरबाद हो जाते हैं…..ओह! ….युद्ध बहादुरी कैसे हो सकता है?’’
मवाना के राजा ने अपना कोट उतारा और उसे इस ढंग से तह किया कि तमगे दिखाई न दें। अब वह उन पर गर्व महसूस नहीं कर रहा था।
अंत भी अप्रत्याशित है। आदर्श से इतर है। पूरी किताब का आनंद जरूर लें। किताब अंग्रेजी में भी है। अलबत्ता कुछ अति साहित्यिक शब्दों से परहेज किया जा सकता था। जैसे-मृत्यु, मार्गदर्शन, व्यस्त, पितृविहीन, विभिन्न, मुद्राओं, उन्नति, प्रशिक्षित, अपरिपक्व, संग्रह, क्रियाकलापों, चिह्न आदि।
किताब: राजा जो कंचे खेलता था
लेखक: एच.सी. मदन
अनुवाद: दिव्या शुक्ला
चित्रांकन: शैवाल चटर्जी
पेज: 30
मूल्यः45
प्रथम संस्करण: 1998
ग्यारहवीं आवृत्ति: 2019
प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,भारत

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By manohar

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