सोचने-विचारने वाली किताबों की ज़रूरत है

‘‘बेटी तुम घर से भाग कर तो नहीं आई हो?’’
कहानी के आरम्भ में यह सवाल उठता है. पाठक के मन में यह विचार कौंधता है. लड़की के साथ जरूर कोई समस्या है। संभव है कि लड़की परेशानी में हो। यह भी हो सकता है कि उसके घर में सौतेलापन का जिन्न मौजूद हो। आदि-आदि। ‘तारों के नीचे तारा’ ऐसी ही कहानी है। यह कहानी पारम्परिक कहानियों से इतर है.पाठक को चौथे वाक्य से ही बाँध देती है। पाठक सतर्क होकर तारा के बारे में सोचने लगता है।

कहानी के शुरुआती मात्र आठ वाक्य पहले पेज पर हैं। आप भी पढ़ना चाहें- तारा को बेचैनी हो रही थी। लगता था कि रेल बहुत धीमी चल रही है। तारा ने खिड़की से बाहर देखा। ऊँची इमारतों की खिड़कियों में से रोशनी चमक रही थी। एक यात्री ने पूछा,‘‘बेटी तुम घर से भाग कर तो नहीं आई हो?’’ डिब्बे में सब सोने की तैयारी में थे। ‘‘नहीं,नहीं।’’ तारा बोली। सुबह सवेरे तारा मीनापुर स्टेशन पर रेल से उतर गयी।

किताब के पहले पेज पर इतने ही कहानी है। लगभग नब्बे फीसदी भाग पर चित्र है। चित्र में एक रेल है जो महानगर के आस-पास से गुजरती हुई आगे बढ़ रही है। रेल के भीतर एक लड़की है जिसका नाम तारा है।
पाठक पढ़ते-पढ़ते खुद से सवाल करता है कि यह तारा कौन है? क्या उसे मीनापुर स्टेशन पर ही उतरना था? कहीं ऐसा तो नहीं कि यात्री के सवाल-जवाब करने से वह डर गई? वह अकेले यात्रा क्यों कर रही है? मीनापुर स्टेशन पर उसका कौन रहता है? ऐसे कुछ सवाल उभरते हैं।

पाठक लपक कर दूसरे पेज को भी पढ़ डालता है। दूसरे पेज पर भी मात्र चार वाक्य हैं। यह कहानी को आगे बढ़ाते हैं। तारा मीनापुर स्टेशन पर उतरकर गंगा के घाट पर जा पहुँचती है। एक नाव गंगा पार जाने को तैयार है। नाव सवारियों से लदी हुई है। केवट भी उससे वही सवाल करता है-‘‘क्या घर से भाग के आई हो?’’

तारा नाव से उतर कर जंगल में जा पहुँचती है। उसके पास कैमरा है। वह हिरन की फोटो खींचती है। वह हिरन से बात करती है और बताती है कि यहाँ उसके पुरखों का गाँव है। कहानी के चौथे पेज पर पाठक जान पाता है कि सूरज डूबने वाला है और तारा एक झूला पुल पार कर रही है। तारा अभी पुल के बीच पर ही पहुँची है। पुल पार क्या है? यह सोचते ही मुस्करा रही है।

कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है पाठक का मन जिज्ञासावश और भी बेचैन हो उठता है। पुल पार करने के बाद उसे विशालकाय जंगल दिखाई पड़ता है। तारा के हाथ में नक़्शा है। वह उसे देखकर आगे बढ़ रही है। रात हो चुकी है। तारा आग जलाती है। वह कुछ खाती है। आसमान में तारे चमक रहे हैं। झिलमिलाते तारे देख वह सोच रही है कि कल सुबह पैदल चलने के बाद वह बस में चढ़ जाएगी। वह अपने गाँव पहुँचेगी जहाँ उसके परदादा-दादी रहते हैं। आज वह तारों की छाँव में सोएगी और अपने घर के सपने देखेगी। तारा मशहूर फोटोग्राफर है।
बस इतनी-सी है यह कहानी।

वह बच्चे जो अब खुद पढ़ लेते हैं उनके लिए ऐसी किताबें बहुत ही कम हैं जो चित्रात्मक हों। दस फीसदी भाग दस शब्दों से बने वाक्यों से भरा हो और नब्बे फीसदी भाग रंगीन चित्रों से भरा हो। कहानी छह से आठ ऐसे पेज में समा जाती हो। पढ़ने के लिए फोंट बारह, चौदह नहीं सोलह या अठारह का हो। यही नहीं ऐसी कहानियाँ बहुत कम हैं जो किसी पात्र को अच्छा बताती हो और किसी को बुरा। ऐसी कहानियाँ बहुत कम हैं जो अंत में यह न कहती हों कि तो इस कहानी से संदेश यह मिलता है कि बच्चों को फलाना काम नहीं करना चाहिए ढिमकाना काम नहीं करना चाहिए।

तो फिर कैसी कहानियाँ? अव्वल तो कहानियाँ हों। नीतिवचन, संदेश, उपदेश और आदर्श-नसीहतों की अतिरंजनाओं से घर-स्कूल और परिवार-अध्यापक अटे पड़े हैं। आकण्ठ भरे पड़े हैं। बच्चों को देखते ही वे सीखों-सन्देशों की कै करने लगते हैं।

किताब: तारों के नीचे तारा
लेखक: माला कुमार एवं मनीषा चौधरी
चित्रांकन: शिखा नम्बिआर
अनुवाद: मनीषा चौधरी
पृष्ठ: 08
मूल्य: 40 रुपए
प्रकाशक: प्रथम बुक्स
आप इसे ऑनलाइन भी पढ़ सकते हैं।

लिंक निम्नवत् हैं-

https://storyweaver.org.in/stories/1220-taron-ke-niche-tara

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By manohar

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