पाठक एक नई, अनोखी दुनिया में चला जाता है।


‘छोटे मणि की उलझन बड़ी’ किताब लीक से हटकर बनी किताब है। इक्कीसवीं सदी के भविष्य की किताब है। आने वाला समय स्मार्ट शहरों का है। ऐसे शहर जो पूर्णतः कम्प्यूटरीकृत होंगे। अधिकतर काम रोबोटनुमा मशीने करेंगी। इंसान का वास्ता इंसान से बहुत कम पड़ेगा।


मणिकंठन अपनी माँ से दूर है। उसके लिए अलग से रहने की व्यवस्था है। लेकिन उसके गले में एक तावीज़ है। यह तावीज़ मणि की हर गतिविधि पर नज़र रखता है। यहाँ तक कि मणि जहां रहता है उसकी दीवारें, मेज़, रसोईघर और जूतों वाली रैक भी उससे बात करती है। मणि को अपना गाँव आनंदपुरम याद आता है। उसे वहाँ का नीला आसमान और नारियल के पेड़ याद आते हैं। वह अत्याधुनिक स्मार्ट सिटी में खुद को उलझा हुआ पाता है।


कहानी का कहन बहुत ही शानदार है। मणि को मेज़, स्कूल का बस्ता, कमरा तक उससे बात कर रहे हैं। कमरा मणि की परेशानी उसकी माँ तक पहुँचा देता है। रसोई उसके लिए चाय-पकौड़े बना सकती है।
किताब में केरल की सबसे लम्बी और बड़ी नदी पेरियार का उल्लेख है। मणि को किसी का टोकते रहना पसंद नहीं है। रसोई वाले जिन्न ने चाय बना दी थी। पकौड़े उसने खुद गरम किए। मशीनी चाय उसे पसंद नहीं आई। मणि के तावीज़ ने पींपीं की आवाज़ आती है। उसकी माँ जानना चाहती है कि अब वह पहले से ठीक है या नहीं।


तावीज़ से जब उसकी माँ की यह आवाज़ आती है-‘‘मणि, क्या माजरा है? अच्छा चलो, ज़रा आईने के सामने तो आओ, मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ। …..!’’
पाठक एक नई, अनोखी दुनिया में चला जाता है। पूरी किताब झट से पढ़ लेने की आतुरता इस किताब को अलग बनाती है। मणि तावीज पटककर भाग जाता है। वह भटक जाता है। बाद में पुलिस वाला उसे उसके घर ले जाकर उसकी माँ के हवाले कर देता है। मणि को महसूस होता है कि यदि गले में तावीज पहने रहता तो वह भटकने से बच जाता।


कहा जा सकता है कि इस तरह की कहानियाँ बाल साहित्य में बहुत कम हैं। काल्पनिक, फिक्शन के साथ यथार्थ और भविष्य में झांकने वाली कहानी। अलबत्ता रसोई का जिन्न और तावीज को कुछ ओर नाम दिया जा सकता था।

अनिल मेनन मशहूर लघुकथाकार हैं। वह उपन्यासकार भी हैं। उपमन्यू भट्टाचार्य एनिमेटर हैं। लघु फिल्मों-फ़ीचर फिल्म की रूप रेखा और शीर्षक आदि की प्रस्तुति सहित सिनेमाई संगीत में खास रूचि रखते हैं। कॉमिक और चित्र बनाते रहते हैं।


चित्र बोलते हुए प्रतीत होते हैं। पूरी किताब पढ़ने की भूख बढ़ाते हैं। संभवतः अनुवाद करने से मूल भाव थोड़ा बहुत पकड़ में न आता हो। कई जगह बहुत लम्बें और जटिल से वाक्य बन गए हैं।

यथा-
‘लेकिन शहर में लगे आधुनिक तकनीक वाले उपकरणों को पता चल गया था कि मणि भटक गया है, और उन्होंने शहर के सम्बन्धित अधिकारियों को इस बारे में खबर कर दी थी।’
‘उसने स्कूल के बस्ते को पढ़ने वाली मेज़ पर रख दिया, पैर झटक कर जूते उतारे और बिस्तर पर लेट गया।’
‘उसे हवा के झोंकों के साथ हौले-हौले झूमते ऊँचे- ऊँचे नारियल के पेड़ और गुलाबीपन लिए नीले आसमान की याद आ रही थी।’


कुल मिलाकर संवाद शैली, विवरण, चरित्र और देशकाल कहानी को शानदार बनाता है। 2019 में पाँचवाँ संस्करण आ चुका है। बीते चार सालों में इसके कई संस्करण आ गए होंगे। यह तय है।


किताब: छोेटे मणि की उलझन बड़ी
लेखक: अनिल मेनन
हिन्दी अनुवाद: दीपा त्रिपाठी
चित्रकार: उपमन्यू भट्टाचार्य
मूल्य: 55 रुपए
पेज: 24
प्रकाशन वर्ष: 2016
पाँचवाँ संस्करण: 2019
स्तर: प्रवीण बाल पाठकों के लिए
प्रकाशक: प्रथम बुक्स
प्रस्तुति: मनोहर चमोली
सम्पर्क: 7579111144

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By manohar

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