तब बिल्ली मेढक की तरह फुदकती थी।

जब वह चलती तो उसके पैरों से टक-टक की आवाज आती। घोड़ा कई बार बिल्ली से कहता,‘‘दूर-दूर तक सबको पता चल जाता है कि तुम आ रही हो।’’
बिल्ली लंबी साँस लेते हुए कहती,‘‘सही कह रहे हो। मुझे शिकार करने में बहुत परेशानी होती है। क्या करूँ?’’
सब उसे एक ही सलाह देते,‘‘पैरों को आराम से रखा करो।’’ लेकिन, बिल्ली थी कि उछलते-कूदते हुए चलती।
एक बार की बात है। वह भूखी थी। वह भोजन की तलाश में चलते-चलते एक पहाड़ पर पहुँच गई। अचानक कोई उस पर झपटा। आसमान में बाज उड़ रहा था। वह बाज की छाया से डर गई थी। बाज को देखकर वह सोचने लगी,‘‘काश! मेरे भी पँख होते। भोजन के लिए इतनी कसरत नहीं करनी पड़ती।’’
बाज आसमान में उड़ता हुआ दूर चला गया। बिल्ली सोचने लगी,‘‘उड़ने के लिए दो पँख ही चाहिए।’’
बिल्ली ने एक पेड़ के दो पत्ते उठाए। उसने पत्तों को पंजों में पकड़ लिया। वह पहाड़ से कूद पड़ी। लेकिन यह क्या ! वह उड़ने की बजाय लुढ़कने लगी। बिल्ली घायल हो गई। वह अपनी चोटों को सहलाते हुए बोली,‘‘उफ! भोजन मिलना तो दूर अब मैं कई दिनों तक चल-फिर भी नहीं पाऊँगी।’’
कई दिन बीत गए। आज वह भोजन की तलाश में चल पड़ी। भूख के मारे उसका बुरा हाल था। उसे फुदकते हुए भी डर लग रहा था। वह पैरों को धीरे-धीरे जमीन पर रख रही थी। चलते-चलते वह फिर उसी पहाड़ पर चली गई।
बिल्ली सोचने लगी,‘‘अब कभी उड़ने के बारे में सोचूँगी भी नहीं।’’
बस! तभी से बिल्ली ने फुदकना छोड़ दिया। अब उसने पैर पटकना भी छोड़ दिया।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’
Reader’s Club Bulletin
Feb-Apr 2021