-मनोहर चमोली ‘मनु’
आज से मासिक परीक्षा हैं। यह सोचकर अखिल जल्दी उठ गया। उसे चिड़ियों की चहचहाट सुनाई दी। वह आंगन में गया। आगन में करतार सिंह चावल के दाने बिखेर रहे थे। अखिल ने आंखों को मलते हुए पूछा,‘‘ दादाजी। आप आँगन में चावल के दानें क्यों बिखेर रहे हो? आँगन गंदा हो जाएगा।’’
करतार सिंह बोले,‘‘बेटा! देखते रहो। अनगिनत गौरैया आएंगी। वो देखो कितनी सारी चिड़िया आ गई हैं।’’
अखिल बोला,‘‘ये जगह-जगह बीट कर दंेगी।’’
करतार हंसते हुए बोले-‘‘आज ज़रा जल्दी क्या उठ गए तो तुम्हें गंदगी का ध्यान आ गया। क्यों?’’
अखिल बोल पड़ा-जरा सोचिए। अगर आप रोज दस दाने ही आँगन में बिखेरोगे, तो एक महीने में तीन सौ दाने। इस तरह एक साल में तीन हजार छह सौ दाने बरबाद कर दोगे।’’ अखिल ने कहा।
यह सुनकर करतार सिंह पहले तो चैंक पड़े। फिर उन्हें हँसी भी आ गई। उन्होंने अखिल को इशारे से अपने पास बुलाया। अखिल दादाजी के पास जा पहुँचा। करतार सिंह ने अखिल का कान प्यार से उमेठते हुए कहा-‘‘वाह! मेरे गुदड़ी के लाल। तुम्हारा दिमाग तो वाकई किसी वित्तमंत्री की तरह चल रहा है। लेकिन मेरे प्यारे बच्चे। जरा आप भी तो सोचिए। इस धरती पर अगर इंसान ही इंसान रह जाएँ तो! पशु-पक्षी समाप्त हो जाएँ तो? तब क्या होगा? सोचा है कभी?’’
इतने सारे सवाल! अखिल सोच में पड़ गया। वह कुछ समझ नहीं पाया।
बोला,‘‘दादाजी, मैं समझा नहीं। पशु-पक्षियों का भोजन केवल चावल तो नहीं है न! चावल के दानें नहीं देंगे तो ये पक्षी समाप्त कैसे हो जाएँगे?’’
करतार ने हँसते हुए कहा-‘‘खा गए न गच्चा। मैं बताता हूँ। अखिल। समूची प्रकृति में एक खाद्य श्रंखला है। एक जीव दूसरे जीव का भोजन है। यहाँ तक की घास-पात भी कई जीवों का भोजन है। जो जीव घास-पात खाते हैं। उन्हंे दूसरे जीव खाते हैं। उन दूसरे जीवों को तीसरे जीव खाते हैं।’’
अखिल अब भी ठीक से नहीं समझा। बोला,‘‘ये तो मैंने भी पढ़ा है। मगर। पक्षी नहीं भी रहे तो हमें क्या फर्क पड़ता है?’’ बातों का सिलसिला चल पड़ा।
‘‘ये तुमने अच्छा सवाल पूछा। देखो। मैं आँगन में चावल के जो दाने डालता हूँ। वो पक्षियों के लिए ही हैं। खासकर गौरेया के लिए हैं। जब वे चावल के दाने खाती हैं, तो चहचहाती हंै। पक्षियों का चहचहाना किसे अच्छा नहीं लगता! अब तुम कहोगे कि अगर हम चावल न भी दें तो भी पक्षी अपना दाना-पानी कहीं न कहीं से चुग ही लेंगी। है न?’’
‘‘हाँ दादा जी। यही तो। फिर?’’
‘‘फिर, हम ऐसा क्यों करें? सुनो। गौरेया पक्षी हम इंसानों के नजदीक रहने वाली चिड़िया है। हमारे घर-आँगन की चिड़िया है। लेकिन हम मनुष्य उसका नामोनिशान मिटाने पर तुले हुए हैं। बेटा। इसे बचाना जरूरी है। नहीं तो आने वाले समय में तुम गौरेया के बारे में सिर्फ किताबों में ही पढ़ पाओगे।’’
‘‘गौरेया को बचाना है! गौरेया को क्या होने जा रहा है?’’
‘‘बेटा। अब हम बेहद आधुनिक हो गए हैं न। हमने अपने घरों के आस-पास के पेड़ ही काट दिये हैं। घर-आँगन क्या। सड़कें क्या और मैदान क्या! हमने सब जगह संगमरमर और सीमेंट का फर्श बिछा दिया है। अब चिड़िया मिट्टी-घास में पनपने वाले कीड़े-मकोड़े खाने कहा जाएगी? वे घोंसला कहाँ बनाएँगी?’’
‘‘जंगल में जाए। और क्या!’’
‘‘बेटा कहा न। कई पक्षी हम इंसानों के आस-पास रहते हैं। पहले घरों में छप्पर हुआ करते थे। छज्जे और रोशनदान हुआ करते थे। गौरेया उनमें अपना घर बना लेती थीं। उनका घोंसला हमारे आस-पास ही हुआ करता था। अब हमारे घरों में रोशनदान ही नहीं हैं। अब तो दो-तीन मंजिल वाले मकान बन रहे हैं। अब तुम ही बताओ। बेचारी गौरेया अपना घोंसला कहाँ बनाए?’’
‘‘दादा जी, जंगल में बनाए और कहाँ! वहाँ उन्हें किसने रोका है। हमारे पास उड़कर आ जाए।’’
‘‘बेटा। अब जंगल ही कहाँ बचे हैं! सुदूर के जंगल भी सिमटते जा रहे हैं। वैसे भी गौरया बेहद संवेदनशील होती है। उसे हम मनुष्यों के आस-पास ही रहना अच्छा लगता है।’’
‘‘अब तो मुझे गौरेया कभी-कभी ही दिखाई देती है। वे कहाँ चली गईं हैं?’’
‘‘बेटा गौरेया ही नहीं, कई पक्षी धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। हमारे देश में पक्षियों की लगभग बारह सौ प्रजातियाँ हैं। लेकिन कई प्रजातियों के पक्षी सालों से नहीं दिखाई दिए। गौरेया को शोरगुल और कोलाहल पसंद नहीं। दिन-प्रतिदिन ध्वनि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। हम कीटनाशकों का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं। उससे भी गौरेया का जीवन खतरे में पड़ गया है।’’
‘‘कीटनाशक तो कीटों को मारने वाली दवाएं हैं न? है न दादाजी!’’
‘‘हाँ। तुम ठीक समझे। इन कीटनाशकों का जरूरत से ज्यादा उपयोग हो रहा है। यह कीटनाशक दवाएँ कई जीव-जंतुओं के जीवन को नष्ट कर देती हैं। गौरेया जब अंडे देती है, तब उसे प्रोटीन की आवश्यकता होती है। गौरेया के बच्चों को जिंदा रहने के लिए भी प्रोटीन चाहिए। पक्षियों को प्रोटीन कीटों को खाने से मिलता है। मगर अब वे कीट तो हमने दवा छिड़क कर पहले ही मार दिए हैं। जो कीट बचे भी हैं, उन पर कीटनाशक दवाओं का इतना असर होता है कि गौरेया उन्हें खा-खाकर अपनी औसत आयु से बहुत कम जिन्दा रह पा रही है। धरती के मौसमों के बदलाव के लिए पशु-पक्षी भी जरूरी हैं। मगर तुम तो मुझे उनके लिए चावल के कुछ दानें डालने से भी मना कर रहे हो। तो बताओ फिर ये चिड़िया कहाँ जाएगी? कैसे जिंदा रहंेगी? क्या खाएँगी?’’
करतार सोच में पड़ गए तो अखिल ने एक पल की भी देरी नहीं की। वह मायूसी से बोला-‘‘साॅरी दादाजी। मुझे नहीं पता था कि हमारे दो-चार चावल के दानों से गौरेया का जीवन बच सकता है।’’
अखिल ने अपना हाथ करतार के हाथ पर रख दिया।
करतार बोले,‘‘लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अनाज की बरबादी करें।’’
अखिल फिर चैंका। बोला,‘‘मतलब!’’
करतार बोले,‘‘मतलब यह कि जितना खाना है उतना ही पकाना चाहिए। भोजन की थाली में जूठन नहीं छोड़ना चाहिए।’’
अखिल ने हाँ में सिर हिलाया। करतार फिर अखिल को घूरते हुए बोले,‘‘लेकिन अखिल, आँगन गंदा भी तो हो जाता है न। तब?’’
अखिल ने दादाजी को घूरते हुए देखा तो कहने लगा-‘‘ओह दादाजी! इसके लिए हम आँगन का एक कोना तय कर लेते हैं। सुबह का समय पक्षियों को दाना देने का सबसे अच्छा समय है। है न? फिर मम्मी बाद में आँगन तो साफ करती ही है। मम्मी नहीं करेगी तो मैं ही आँगन साफ कर दिया करूँगा। प्राॅमिस करता हूँ।’’ अखिल ने उपाय भी सुझा दिया।
‘‘बेटा। मम्मी का ही काम साफ-सफाई का नहीं है। मैं सुबह उठकर आँगन साफ कर चुका हूँ। एक बात ओर हमें खुद ही गंदगी फैलाने से बचना चाहिए।’’
अचानक अखिल को याद आया कि उसकी आज से मासिक परीक्षा है। उसे तो पढ़ाई करनी है। यह सोचकर वह मुँह-हाथ धोने चला गया।
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