विरह वेदना और हूक को गुंजायमान करता पक्षी

इन दिनों हिमालयी क्षेत्र में ‘गढ़वाल’, कुमाऊँ और क्या ही जौनसार ! चहुँ दिशाओं में एक अलग-सा पक्षी दिखाई देता है। उसकी हूक सुनाई पड़ती है। मुझे इसका स्वर विरह और वेदना से लबालब भरा-सा प्रतीत होता है। इस पक्षी को बचपन से सुनता-देखता आया हूँ। पता करते हैं तो पाते हैं कि इस पक्षी के कई नाम हैं। यथा पहाड़ी कोयल, हिलांस, न्यौली, न्यूली, ग्रेट बारबेट, हिमालयन बारबेट, त्रिहो, हेतुलुका, कुन न्योंग, न्यहुल, नयाल, हरी कबूतरी आदि आदि। पुराने बुजुर्ग हिलांश या हिलांस को पूरा हरा बताते हैं। यह भी कहते हैं कि वह घने जंगलों में रहती है और घुगती यानी फा़ख्ता से थोड़ा बड़ी होती है। यानी हिलांस और इस पक्षी को अलग-अलग भी बताया जाता है।


मशहूर साहित्यकार, प्रकृति के चितेरे और विज्ञान के जनलेखक देवेन्द्र मेवाड़ी बताते हैं,‘‘हाँ, यही है हमारी न्योली जिसकी आवाज दिन भर घाटियों में गूंजती है- न्याहो ! न्याहो ! न्याहो ! प्यार का गीत गाती हैं वे। प्रेमी प्रेमिका एक-दूसरे से कुछ कहती हैं। क्या? कोई नहीं जानता। वैज्ञानिकों ने मानव प्रजाति को खत्म करने के लिए परमाणु बम बना लिया है। इतने परमाणु बम और अन्य विध्वंसक हथियार बना लिए हैं जो पूरी पृथ्वी को नष्ट कर सकते हैं। लेकिन, वे, वे चिड़ियों की भाषा नहीं समझ पाए हैं। उस पर गहन रिसर्च की ही नहीं। हाँ, जब हमारे देश में अंग्रेज आए तो दिन भर न्योली की न्याहो ! न्याहो ! सुनकर उन्होंने ऊबकर इसका नाम रखा दिया-फीवर बर्ड !’’


जानकार बताते हैं कि यह पक्षी अक्सर अकेला दिखाई पड़ता है। अधिकतर मानते हैं कि पुकारने वाला अमूमन नर होता है। यह अपनी प्रेमिका को पुकार रहा है। उसकी पुकार में उदासी, करुणा और विरह को आसानी से महसूस किया जा सकता है। कुमाऊँ में तो न्यौली गाई जाती है। घसियारिनें हो या अपरिचित महिलाएँ एक-दूसरे से दूर हों तब भी एक-दूसरे के सुर में सुर मिलाती हुई पदबन्ध जोड़ती चली जाती हैं।


कोई तो यहाँ तक कहता है कि नर अपनी पुकार में कोहू कोहू या कांहो कांहो यानी कौन है कौन है, कहाँ हो-कहाँ हो अपने युगल को खोजता फिरता है।
न्यौली के बारे में पहाड़ों में कुछ इस तरह भी कहा जाता है-‘न्यौली बासो बारमास, कफू बासो जेठ. . .!
पक्षी विज्ञानी तो यह भी कहते हैं कि पुकारने वाली मादा होती है और अपने नीड़ बनाने, अंडो-बच्चो की देखभाल के लिए उपयुक्त वर खोजती है। कहते हैं कि यह कोटर में घोंसला बनाते हैं। तभी तो वह कहती है-‘‘को हू ,को हू , यानी कि कौन है, कौन है?’’
इस हिलांस यानी न्यौली के बारे में प्रचलित कई लोक कथाएँ भी हैं।
एक मैं भी कहता हूँ-


पहाड़ का एक चीड़-देवदार, बांज-बुरांश का गाँव था। धार-खाल से घिरा गाँव था। गाँव पार करने के लिए पहाड़ लाँघना पड़ता था। गाँव के एक परिवार में भाई-बहिन भी रहते थे। कमली और बीरू। अभी दोनों बचपन से किशोर हो ही रहे थे कि कमली का ब्याह सुदूर कहीं धार पार डांडा में बसे गाँव में हो गया। बीरू भी अपनी बहिन कमली के साथ जाने को आमादा था। माँजी ने समझाया। कहा,‘‘भुली को खुशी-खुशी बिदा कर। साल में तीज-त्यौहारों में भुली अपने मैत आएगी।’’
समय बीतता गया। एक साल हुआ। दूसरा साल हुआ। तीसरा साल भी बीत गया। भुली कमली के ससुराल से कोई ख़ैर-ख़बर नहीं आई। बीरू भैजी का दिल बैठ गया। एक दिन चुपचाप बिना बताए वह भुली के ससुराल चल पड़ा।
कोमल मन का किशोर डांडी-काँठयों की जटिलता-बीहड़ता से अनभिज्ञ था। लेकिन उत्साह में कोई कमी नहीं थी। धार-खाल, डांडा पार करता हुआ वह चीड़-देवदार, बांज-काफल और बुराँश के घने जंगलों में भटक गया। भूखा-प्यासा जंगली फल-फूलों के सहारे कब तक ज़िंदा रहता। एक दिन कहीं जंगल में उसने दम तोड़ दिया। मरने से पहले वह रोया। बिलखता हुआ कमली को पुकारता रहा। कहाँ हो? कहाँ हो?
कहते हैं कि बाद उसके वह एक पक्षी बन गया। हिलाँस यानी न्यौली। आज भी यह पक्षी अपनी भुली सरूली को खोजता फिरता है। ऐसा माना जाता है।



हिलांस ही  Great barbet. Great Himalayan Barbet है। इसका वैज्ञानिक नाम Megalaima Virens है। कुछ इसे Psilopogon Virens भी बताते हैं। यह Megalaimidae परिवार से संबंध रखता है।
यह पक्षी उत्तराखंड में ही नहीं पाया जाता। यह जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल के पर्वतीय क्षेत्रों, सिक्किम, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा में भी पाया जाता है। भारत से बाहर पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, चीन, लाओस और वियतनाम में भी यह दिखाई देता है।
यह पक्षी 25 से 40 सेंटीमीटर लंबा हो सकता है। इसका भार 150 से 350 ग्राम तक होता है। नर और मादा की पहचान आसान नहीं होती। तभी तो कहा नहीं जा कसता कि नर या मादा में कौन अधिक पुकार लगाता है। यह बहुत सारे रंग अपने शरीर में धारण किए हुए है। सिर और गला भी गहरा नीला होता है। चोंच पीले रंग की होती है। चोंच काफी लंबी होती है। शायद इसलिए कि पेड़ में कोटर बनाना आसान हो जाता है। इस पक्षी की काया में काला रंग भी काफी मात्रा में होता है। पीठ और गरदन के हिस्से में भूरा रंग भी पाया जाता है। पीठ में कुछ हिस्सा हरे रंग का भी है। पूंछ हरे और पीले रंग के मिश्रण से सजी हुई होती है। इस पक्षी के पैरों के ऊपर यानी पेट का हिस्सा गहरे भूरे रंग का और हल्के नीले रंग का होता है। पेट पीला और हरा रंग का होता है। पूंछ के पीछे वाले भाग का अगला हिस्सा लाल रंग का होता है। है न कमाल के रंगों से भरा यह पक्षी?
यह बहुत दूरी की उड़ान आसानी से भर लेता है। इंसानों के आस-पास बड़े पेड़ों में खूब दिखाई देता है। खड़ीक, टिमूर, चीड़-देवदार जैसे पेड़ इसे खू़ब पसंद हैं। पहाड़ी गांवों के आसपास यह पक्षी सुरईं, खड़ीक, तूण आदि के पेड़ों पर रहना पसंद करते हैं। इस पक्षी को समुद्र तल से 1100 मीटर से 2800 मीटर की की ऊँचाई बहुत भाती है। अलबत्ता यह जाड़ों के दिनों में गरम इलाकों की ओर चला जाता है। फल, फूल बाजादि इसको पसंद हैं। कभी-कभी कीट-पतंगों को भी खा लेता है। मई-जून ही इनका खास मौसम है जब यह अकेले से दुकेले हो जाते हैं और परिवार बनाते हैं। यह कोटर में पहले से बने-बनाए सूराखों में अपना डेरा बना लेते हैं। दो से पाँच अंडों को देने और सेने से लेकर चूज़े बनने की प्रक्रिया में एक माह से अधिक का समय लगता है।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’

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By manohar

परिचयः मनोहर चमोली ‘मनु’ जन्मः पलाम,टिहरी गढ़वाल,उत्तराखण्ड जन्म तिथिः 01-08-1973 प्रकाशित कृतियाँ ऐसे बदली नाक की नथः 2005, पृष्ठ संख्या-20, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली ऐसे बदला खानपुरः 2006, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। सवाल दस रुपए का (4 कहानियाँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। उत्तराखण्ड की लोककथाएं (14 लोक कथाएँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-52, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। ख्खुशीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून बदल गया मालवाः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून पूछेरीः 2009,पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली बिगड़ी बात बनीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून अब बजाओ तालीः 2009, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। व्यवहारज्ञानं (मराठी में 4 कहानियाँ अनुदित,प्रो.साईनाथ पाचारणे)ः 2012, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः निखिल प्रकाशन,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। अंतरिक्ष से आगे बचपनः (25 बाल कहानियाँ)ः 2013, पृष्ठ संख्या-104, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-40-3 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। कथाः ज्ञानाची चुणूक (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः उलटया हाताचा सलाम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पुस्तके परत आली (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः वाढदिवसाची भेट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सत्पात्री दान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मंगलावर होईल घर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवक तेनालीराम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः असा जिंकला उंदीर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पिंपलांच झाड (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरं सौंदर्य (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः गुरुसेवा (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरी बचत (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः विहिरीत पडलेला मुकुट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शाही भोजनाचा आनंद (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कामाची सवय (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शेजायाशी संबंध (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मास्क रोबोट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः फेसबुकचा वापर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कलेचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवा हाच धर्म (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खोटा सम्राट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः ई साईबोर्ग दुनिया (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पाहुण्यांचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। जीवन में बचपनः ( 30 बाल कहानियाँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-120, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-69-4 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। उत्तराखण्ड की प्रतिनिधि लोककथाएं (समेकित 4 लोक कथाएँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-192, प्रकाशकः समय साक्ष्य,फालतू लाइन,देहरादून। रीडिंग कार्डः 2017, ऐसे चाटा दिमाग, किरमोला आसमान पर, सबसे बड़ा अण्डा, ( 3 कहानियाँ ) प्रकाशकः राज्य परियोजना कार्यालय,उत्तराखण्ड चित्र कथाः पढ़ें भारत के अन्तर्गत 13 कहानियाँ, वर्ष 2016, प्रकाशकः प्रथम बुक्स,भारत। चाँद का स्वेटरः 2012,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-40-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बादल क्यों बरसता है?ः 2013,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-79-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। जूते और मोजेः 2016, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-97-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। अब तुम गए काम सेः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-88-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। चलता पहाड़ः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-91-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बिल में क्या है?ः 2017,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-86808-20-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। छस छस छसः 2019, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-89202-63-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। कहानियाँ बाल मन कीः 2021, पृष्ठ संख्या-194, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-91081-23-2 प्रकाशकः श्वेतवर्णा प्रकाशन,दिल्ली पहली यात्रा: 2023 पृष्ठ संख्या-20 आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-5743-178-1 प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत कथा किलकारी: दिसम्बर 2024, पृष्ठ संख्या-60, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-92829-39-0 प्रकाशक: साहित्य विमर्श प्रकाशन कथा पोथी बच्चों की: फरवरी 2025, पृष्ठ संख्या-136, विनसर पब्लिकेशन,देहरादून, उत्तराखण्ड, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-93658-55-5 कहानी ‘फूलों वाले बाबा’ उत्तराखण्ड में कक्षा पाँच की पाठ्य पुस्तक ‘बुराँश’ में शामिल। सहायक पुस्तक माला भाग-5 में नाटक मस्ती की पाठशाला शामिल। मधुकिरण भाग पांच में कहानी शामिल। परिवेश हिंदी पाठमाला एवं अभ्यास पुस्तिका 2023 में संस्मरण खुशबू आज भी याद है प्रकाशित पावनी हिंदी पाठ्यपुस्तक भाग 6 में संस्मरण ‘अगर वे उस दिन स्कूल आते तो’ प्रकाशित। (नई शिक्षा नीति 2020 के आलोक में।) हिमाचल सरकार के प्रेरणा कार्यक्रम सहित पढ़ने की आदत विकसित करने संबंधी कार्यक्रम के तहत छह राज्यों के बुनियादी स्कूलों में 13 कहानियां शामिल। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा पहली में कहानी ‘चलता पहाड़’ सम्मिलित। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा चौथी में निबंध ‘इसलिए गिरती हैं पत्तियाँ’ सम्मिलित। बीस से अधिक बाल कहानियां असमियां और बंगला में अनुदित। गंग ज्योति पत्रिका के पूर्व सह संपादक। ज्ञान विज्ञान बुलेटिन के पूर्व संपादक। पुस्तकों में हास्य व्यंग्य कथाएं, किलकारी, यमलोक का यात्री प्रकाशित। ईबुक ‘जीवन में बचपन प्रकाशित। पंचायत प्रशिक्षण संदर्शिका, अचल ज्योति, प्रवेशिका भाग 1, अचल ज्योति भाग 2, स्वेटर निर्माण प्रवेशिका लेखकीय सहयोग। उत्तराखण्ड की पाठ्य पुस्तक भाषा किरण, हँसी-खुशी एवं बुराँश में लेखन एवं संपादन। विविध शिक्षक संदर्शिकाओं में सह लेखन एवं संपादन। अमोली पाठ्य पुस्तक 8 में संस्मरण-खुशबू याद है प्रकाशित। उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग में भाषा के शिक्षक हैं। वर्तमान में: रा.इं.कॉ.कालेश्वर,पौड़ी गढ़वाल में नियुक्त हैं। सम्पर्कः गुरु भवन, पोस्ट बॉक्स-23 पौड़ी, पौड़ी गढ़वाल.उत्तराखण्ड 246001.उत्तराखण्ड. मोबाइल एवं व्हाट्सएप-7579111144 #manoharchamolimanu #मनोहर चमोली ‘मनु’

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