शैक्षिक सरोकारों को समर्पित शिक्षकों तथा नागरिकों का साझा मंच

शैक्षिक दख़ल, छमाही का अंक फेसबुक तथा शिक्षा के मुद्दे पर केन्द्रित है। यह संयुक्तांक है। यानी जनवरी 2024 का और जुलाई 2024 का यह समेवित अंक है। यह शैक्षिक सरोकारों को समर्पित शिक्षकों तथा नागरिकों का साझा मंच है। पिछले 13 वर्षों से शैक्षिक दख़ल शिक्षक, शिक्षा, स्कूल और अभिभावकों के साथ समाज केन्द्रित विषयों पर सार्थक विमर्श-बहस जारी कर रहा है। एक सौ छःह कलमकारों, तेरह फेसबुक परिचर्चा के सहभागियों, दो अभिमतदाताओं सहित यदि पत्रिका के रेखांकन-आवरण-टाईप सैटिंग-डिजायनिंग-वितरण को जोड़ लें तो लगभग 121 से अधिक मानवीय बौद्धिक-शारीरिक श्रम के संयोजन से यह अंक पाठकों के हाथों में पहुँचा है। आवरण आकर्षक बना है। गुणवत्ता भी बेहतर है। भीतर के काग़ज़ भी भार के स्तर पर उचित हैं। यदि और बेहतर यानी मोटा काग़ज़ उपयोग करते तो अंक वज़नी हो जाता।


मुखावरण के भीतरी पेज पर देवेश जोशी कृत कविता सुनो बच्चो है।

पत्रिका के अन्तिम आवरण के भीतर निजार कब्बानी की कविता है। अनुवाद सिद्धेश्वर सिंह ने किया है।

अन्तिम आवरण के बाहर दसवीं कक्षा की छात्र सिमरन शर्मा की कविता कलम है।


आरम्भ स्तम्भ के तहत महेश पुनेठा कृत सम्पादकीय ‘फेसबुक का रचनात्मक उपयोग’ अंक के प्रकाशन का ध्येय भी बताता है। वह लिखते हैं-


‘शैक्षिक दखल’ का यह विशेषांक इस माध्यम की उपयोगिता का एक बड़ा प्रमाण है। इस अंक के लिए हमें फेसबुक से ही सारी सामग्री मिली। हमने इस अंक में ऐसी सामग्री देनी की कोशिश की है, जो बचपन, स्कूल, शिक्षक, कक्षा-कक्ष शिक्षण, शिक्षा में नवाचारी प्रयोगों, पढ़ने की संस्कृति, पुस्तकालय और शिक्षा दर्शन से जुड़ी है। यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि फेसबुक में तमाम लोग इन विषयों से जुड़ी हुई गंभीर और उपयोगी बातें पोस्ट कर रहे हैं। फेसबुक का शैक्षिक दृष्टि से रचनात्मक उपयोग करने वाले लोगों की अच्छी खासी संख्या देखी जा सकती है। बहुत सारे पेज हैं, जो पूरी तरह से बालमन और शिक्षा को समर्पित हैं। इनके माध्यम से नए-नए लोगों और उनके नवाचारी कार्यों से परिचित होने का मौका मिला। हमारा विश्वास है कि यह सामग्री शैक्षिक दखल के पाठकों के मन में निश्चित रूप से नया करने की ऊर्जा का संचार करेगी। नए विचार शिक्षकों के मन में पैदा होंगे। हमारी कोशिश रही कि ऐसे तमाम व्यक्तियों और समूहों को, जो शिक्षा में कुछ हटकर सोच और कर रहे हैं, इस अंक के माध्यम से रेखांकित किया जाय ताकि सभी अधिक से अधिक लोग परस्पर जुड़ सकें और फेसबुक जैसे सामाजिक मंच का शैक्षिक विमर्श और कार्यों को आगे बढ़ाने में रचनात्मक उपयोग कर सकें। यहाँ और भी ढेर सारी उपयोगी सामग्री है। इस अंक में हमने केवल बानगी प्रस्तुत की है। एक-दो पोस्ट्स ही ली हैं, ज्यादा आप फेसबुक में जाकर देख-पढ़ सकते हैं। हमारा उद्देश्य परस्पर एक-दूसरे को जोड़ देना मात्र है। हमारी अपनी सीमाएँ हैं। पूरी कोशिश करने के बावजूद बहुत सारे लोग हमसे छूट गए होंगे। आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे। आप लोगों से प्राप्त महत्वपूर्ण सुझावों को दृष्टिगत रखते हुए आगे भी हम इस क्रम को जारी रखेंगे।’


और अंत में संपादकद्वय दिनेश कर्नाटक भले ही अंक में कनार्टक हो गए हैं। वह सोशल मीडिया के साथ जीने की कवायद के अन्तर्गत कहते हैं-


‘एक प्रकार से स्मार्टफोन ने लोगों का बहुत सशक्तिकरण किया है। क्या कोई सोच सकता था कि वह अपना न्यूज़ चैनल शुरू कर सकता है? अपनी बातों को एक साथ बहुत लोगों को पहुँचा सकता है। अपने लिखे को हजारों-लाखों लोगों को पढ़वा सकता है। यह काम सोशल मीडिया तथा स्मार्टफोन की वजह से संभव हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सोशल मीडिया में बहुत कुछ ऐसा है जो बहुत गंदा और मनुष्य को भ्रमित करने वाला है लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि बहुत कुछ इतना श्रेष्ठ और इतना शानदार है जो मनुष्य को बेहतरी का रास्ता दिखा सकता है। तो इसका समाधान यही है कि सोशल मीडिया और स्मार्टफोन से भागने के बजाय उसके साथ एक संतुलित रिश्ता कायम किया जाए। ऐसा संतुलित रिश्ता जिसमें मनुष्य अपनी प्रतिभानुसार अपने लक्ष्य, अपने रास्ते की ओर भी बढ़ता रहे और सोशल मीडिया के जरिए खुद को अपने समय की हलचलों और लोगों से भी जोड़कर रख सके। देखा जाए तो सोशल मीडिया तथा स्मार्टफोन के जरिए बहुत से लोगों ने अपने चैनल बनाकर या किसी खास उद्देश्य या थीम पर प्रोग्राम बनाकर इसका सकारात्मक उपयोग किया है। लोगों के जीवन को प्रभावित किया है और अपने जीवन को भी बेहतर बनाया है। अगर हम शिक्षा जैसे मुद्दों की ही बात करें तो बहुत से लोग फेसबुक आदि में शिक्षा के मुद्दों पर लिख रहे हैं। जब हम लोग शैक्षिक दखल के फेसबुक अंक की कल्पना कर रहे थे तो हमें अंदाजा नहीं था कि इतनी बड़ी संख्या में लोग शिक्षा के सवालों पर गंभीरता से फेसबुक में लिख रहे होंगे। इन पंक्तियों के लेखक ने यूट्यूब में शिक्षा पर केंद्रित कुछ महत्वपूर्ण चैनल देखे। यहाँ तक कि एक ओर रील्स में कई लोग बहुत ही हल्के किस्म के वीडियो बनाते हैं तो कई लोग शिक्षा के सवाल तथा पेरेंटिंग पर बहुत ही ज्ञानवर्धक वीडियो बना रहे हैं।’


फेसबुक परिचर्चा-24 में बहस के केन्द्र में फेसबुक में शिक्षा ही रहा। अनुपमा तिवाड़ी, महबूब सिंह, प्रमोद दीक्षित, मनोहर, अशोक कुमार, गिरीश पांडे ‘प्रतीक’, दिनेश कर्नाटक, त्रिभुवन सिंह राना, रश्मि रावत, विजय कुमार भास्कर और प्रदीप कुमार बहुगुणा ने हिस्सेदारी की।


इस अंक में विनय कुमार की फेसबुक पोस्ट हैं। एक मातृभाषा पर और दूसरी माँ संगीत है पर आधारित हैं। हिमांशु कुमार की पोस्ट है-हम बच्चों को क्या सिखा रहे हैं? पाउलो फ्रायरे: उत्पीड़ितो का शिक्षाशास्त्री पर फेसबुक पोस्ट अशोक पांडे की अंक में शामिल है। इसी तरह प्रभात रंजन की तीन अलग पोस्ट अंक में हैं। हितेंद्र पटेल की पोस्ट हिंदी के साथ अनुभव, सिद्धेश्वर सिंह की कबीर के कूप के बहाने कुछ बातें, सुंदर चंद ठाकुर की इतने भर से वे हत्यारे बनने से बच सकते हैं, जे. सुशील की मातृभाषा की अवधारणा, संदीप नाईक की साहित्य के एजेंडे में स्कूल, बहादुर पटेल की ओटला लाइब्रेरी देवास के खजाने से, संजीव ठाकुर की पोस्ट दौड़े, मेरे बच्चे, आइवर यूशिएल की विज्ञान संबंधी पोस्ट भी शामिल की गई है।


इस अंक में आप विष्णु कुमार शर्मा की पोस्ट अफलातून की डायरी के साथ यह कलंक हम सबके माथे पर है भी पढ़ सकते हैं। राजेश उत्साही की वान्या की डायरी, सुशील उपाध्याय की गुरु होने का भार मेरे कंधे तोड़ देगा, डॉ॰ अरुण कुकसाल की टैगोर का शिक्षादर्शन, मदन मोहन पांडेय की पढ़ाई, स्कोर, रोजगार और सुसाइड, आशुतोष उपाध्याय की पोस्ट आपतन, जापतन और विज्ञान की भाषा, अनुशक्ति सिंह की पोस्ट बड़ी कमाल की चीज़ है सोशल मीडिया, सुबीर शुक्ला की स्कूली शिक्षा नोट्स, चंदन यादव की बहुत से कौशल और ज्ञान स्कूल के बाहर, स्कंद शुक्ला की जिज्ञासा बनाम विस्मयबोध, बिपिन कुमार शर्मा की मेरे सपनों का स्कूल, राकेश जुगरान की बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान: एक विमर्श, देवेश जोशी की फकमफोड़, फ़नेटिक्स, फ्रेंड और पॉपकॉर्न का हिंदी कनेक्शन भी पढ़ी जा सकती है।


डॉ॰ नंद किशोर हटवाल की पोस्ट बहस में कविता: आम की टोकरी, जाकिर हुसैन की बाल साहित्यकारों के लिए संदर्भ सामग्री, रेखा चमोली की एक मजेदार कविता-आम की टोकरी, अशोक कुमार चौहान की तुकबंदीनुमा कविता को समझा ही नहीं, नेहा नेरूका की अश्लील तो बिल्कुल भी नहीं, मोनिका भंडारी की छोकरी और चूसना जैसे शब्दों से आपत्ति, दिव्या जिंकवान की मुझे यह शब्द पसंद नहीं, मुकेश चन्द्र बहुगुणा की साहित्य का सनसनीखेज स्टिंग आपरेशन, वीरेंद्र दुबे की पाँच दिन की पोस्ट भी अंक में हैं।


इसी अंक में रमेश शर्मा की पोस्ट बच्चों को देखने का नजरिया कितना सही, मनोहर की यह तसवीर आधी-अधूरी है, दीनानाथ मौय्र की जीवन में एक शिक्षक का होना, महेश प्रजापति की बंधनों से मुक्ति ही सच्ची स्वतन्त्रता, सुनील मानव की बाल साहित्य पर बतकही, ममता सिंह की एवरेज़ होना एवरेज़ बात नहीं जाना, मृदुला शुक्ला की इतना प्यार और अटेंशन, असमुरारी नंदन मिश्र की संकट भाषा का, आलोक कुमार मिश्रा की सुधरे भाषाई परिवेश, माणिक की समझना सदैव शेष रह जाता है, प्रवीण त्रिवेदी की शिक्षकों को दंडित करना कितना जायज?, प्रकाश चंद की समाज विज्ञान की पढ़ाई के प्रति नज़रिया, प्रमोद दीक्षित ‘मलय’ की शैक्षिक संवाद मंच, डॉ॰ अनुपमा गुप्ता की कैसी हों बाल साहित्य की पुस्तकें?, डॉ॰ संजय कुमार की बच्चों की परवरिश, डॉ॰ सौरभ टंडन की खटाक, मोहन चौहान की एक अनूठी पुस्तक रैली, हेमा बिष्ट की खुशी से वह चहक रही थी, गजेंद्र रौतेला की मस्तू, मनोज कुमार बोस की अध्यापक के चाह लेने पर, महेश सिंह बसेड़िया की उसकी रुचि पढ़ाई में बढ़ गई, चिंतामणि जोशी की दीवार पत्रिका के साथ दो साल, रमेश जोशी की एक जमाना था, दीपक कुमार की गणित के प्रति बच्चों का एक स्वाभाविक डर, मयंक उनियाल की राष्ट्रीय गणित दिवस और गणित का नोबेल, निर्मल नियोलिया की पारिस्थितिकी तंत्र की समझ को भी पढ़ा जा सकता है।


प्रदीप बहुगुणा ‘दर्पण’ की बच्चे और सृजनात्मक लेखन, आशीष नेगी की सृजन समता यात्रा, रविशंकर गुसाई की विषयों की उपेक्षा उनकी असामयिक मौत का कारण ना बने, दिनेश जोशी की शिक्षक बन जाना, दीपक देश की गतिविधियों में इन्वॉल्व होकर सिखाना, सुंदर शिक्षार्थी की बच्चे पढ़ते नहीं, देवेन्द्र कुमार की अध्यापक, भास्कर जोशी की हमारा अपना पुस्तकालय, मनीषा सिंह की भूलों का हौवा मत बनाइए, बीना फुलेरा की बिन प्यादे का लोटा, पूरन बिष्ट की कोई बुरी परछाई पड़ गई, रंजन कुमार की छुट्टी नोट, बृजेश सिंह की बच्चे हर रोज़ चौंका देते हैं, शिवेंद्र मिश्रा की अभिभावकों की महत्वाकांक्षा, जयवीर सिंह परिवर्तनवादी की टीचर डायरी बाल दिवस पर, प्रबोध उनियाल की कविताएँ, गिरीश चंद पांडेय ‘प्रतीक’ की वो विज्ञापन और क्वेस्चन मार्क का प्रश्न, महावीर यायावर की टॉपर्स का क्या हुआ?, भगवत प्रसाद पाण्डेय की बरसाती दिन वाली छुट्टी, गंगा आर्या की पक्षी मेले का आनंद, राजीव जोशी की दीवार पत्रिका-लेखन कार्यशाला, सरकारी शिक्षा का कोई विकल्प नहीं, कमलेश उप्रेती की किसके हाथों शिक्षा की पतवार, अभिनव सरोवा की नकारात्मकता बनाम सकारात्मकता, नवेंदु मठपाल की पुछड़ी में सायंकालीन स्कूल, विनोद उप्रेती की बाल विज्ञान खोजशाला की पोस्ट भी पठनीय है।


कमलेश अटवाल की पोस्ट सामुदायिक पुस्तकालय अभियान, कमलेश जोशी की अधूरी कहानी पूरी करो, किरन तिवारी की बच्चे जब अपनी बातें लिखते हैं, ज्योति देशमुख की पहली बार स्कूल जने में बच्चे रोते क्यों हैं?, पल्लव जोशी की आपत्ति तो मुझे भी है, विजय कुमार भास्कर की ग्रीष्मावकाश क्यों और कैसे? वंदना पांडे की जीवन कौशल सीखने की प्रक्रिया, आशुतोष भाकुनी की दमन करने की मानसिकता बनती है, अमिता शुक्ला की छोटी-छोटी बातों में खुशियाँ, परागः एन इनेसेटिव ऑफ टाटा ट्रस्ट की घोड़ा लाइब्रेरी, हिमांशु जोशी की शिक्षा में नवाचार जरूरी, नवीन जोशी की शिक्षा का अर्थ, उमंग लोकतांत्रिक स्कूल की शिक्षक और अभिभावकों को मिलकर काम करना होगा, ज्योति भट्ट की पढ़ाई के अलावा और सभी मुद्दे अहम, हेम चन्द्र पाठक की एक पाती अपने पुत्र के नाम संकलित की गई है। बेहतर होता कि इन फेसबुकियों का लिंक भी उनके साथ दिया होता। पाठक सीधे यहाँ से इन तक क्लिक कर पहुँच सकते हैं। एक सौ अट्ठावन पन्नों में कुछ ऐसे रचनाधर्मी यहां संकलित हो गए हैं जो फेसबुक का बेहतरीन उपयोग कर रहे हैं।


अंक में पेज 23 पर शैक्षिक दख़ल से जुड़ने की अपील है। यह लिखा भी है कि आजीवन सदस्यता ली जा सकती है। वहीं पेज 50 पर नोट है कि आजीवन सदस्यता अब समाप्त कर दी गई है। एक समय था जब पाठक के जीवन से आजीवन सदस्यता जुड़ी थी। फिर यह कहीं तीस, कहीं पच्चीस और कहीं बीस हो गई हैं। कहीं पत्रिका के जीवन से पाठक की आजीवन सदस्यता जुड़ी हुई मानी जाती है। छपाई की स्याही का रंग मुझे प्राप्त अंकों में धीमा है। यह गहरा हो सकता है। पचास से अधिक रेखांकन इस बार पत्रिका में हैं। रेखांकन उभर नहीं पाए हैं। उन्हें गहरा किया जा सकता था। यही कारण है कि पेशेवर चित्रकार गहरे काले कलम से काम करते हैं। यह अनुभव भी धीरे-धीरे बढ़ता है।


इस बार के रेखांकन पत्रिका को और भी बेहतर बना रहे हैं। साहित्यकार एवं संज़ीदा पाठक शशि भूषण बडोनी ने समूचे अंक में पहाड़ के जन-जीवन की झांकी को भी उकेरा है। अनुक्रम में रचनाकार है लेकिन रचना की बानगी की झलक होती तो विविधता का पता भी अनुक्रम में पता चल जाता है। पाँच-सात महीने बाद यदि पाठक को आम की टोकरी के क्रम में कोई पन्ना चाहिए होगा तो उसे समूचा अंक उलटना-पलटना होगा। रचनाकार का पता इस बार नहीं है। यह सोच रही होगी कि फेसबुक पर सब उपलब्ध है तो शामिल रचनाकारों का लिंक देना और बेहतर होता। मसलन मैं डॉ॰ अरुण कुकसाल को फेसबुक पर सर्च कर रहा था। वह मिल नहीं रहे थे। फिर मैंने अरुण लिखा तब भी नहीं मिले। जब मैंने Arun Kuksal लिखा तब मैं उनकी भित्ति पर पहुँच पाया। Dinesh Karnatak सर्च किया तो कई सारे Dinesh Karnatak की प्रोफाइल खुल गईं। पत्रिका के संपादक Dinesh Karnatak की प्रोफाइल हिन्दी में दिनेश कर्नाटक है। बहरहाल, इस अंक की सामग्री विपुल है। बच्चे, बाल जीवन, स्कूल, अभिभावक, समाज, शिक्षा, पाठ्य पुस्तक, पुस्तकालय, बाल मनोविज्ञान, शिक्षाविद्, शिक्षा साहित्य, भाषाएँ, शिक्षक, सम्पादक, लेखक, प्रकाशन, डिजिटल सामग्री, सूचना तकनीक, विज्ञान शिक्षण, सामाजिक ताना-बाना आदि पर बेहतरीन विचार अंक में हैं।


पढ़ते-पढ़ते महसूस हुआ कि पाठकों को पत्रिका के इस अंक में फेसबुक में किस कालखण्ड से किस कालखण्ड तक का माहौल मिलेगा। लगा कि फरवरी 2013 से जनवरी 2024 के बीच की अवधि तक ही पाठक जा पहुँचेंगे। गजेन्द्र रौतेला की मस्तू डायरी 12 नवंबर 2029 पर नज़र गई। लगा हो सकता है कि गजेन्द्र रौतेला भविष्य के दिन को भी तो आंक सकते हैं। लेकिन कक्षा चार की मेरीगोल्ड का जिक्र आया तो लग गया कि भूल से यह प्रिंट हो गया है। फेसबुक खगाला तो पोस्ट मिल गई। वह 12 नवम्बर 2019 है। ले आउट-डिजायन शानदार है लेकिन रचनाकार का नाम और उपशीर्षक गहरे काले में आँखों पर जोर डाल रहे हैं, लगता है। हाँ! पेज संख्या 5 का उपशीर्षक और कैप्शन में उपयोग स्याही उसे उभार रही है। वहीं पेज संख्या 157 को देखें तो साफ अन्तर नज़र आता है। यह अंक संग्रहणीय है और बार-बार पढ़ने योग्य बन पड़ा है।


पत्रिका: शैक्षिक दख़ल, छमाही
यह अंक: जनवरी-जुलाई 2024, संयुक्तांक
इस अंक का मूल्य: 100 रुपए
संपादक: महेश पुनेठा-दिनेश कर्नाटक
पृष्ठ: 158
आवरण: अम्मार खान
रेखांकन: शशि भूषण बडोनी
संपादकीय संपर्क: शिव कॉलोनी, न्यू पियाना, निकट डिग्री कॉलेज, पिथौरागढ़
सम्पर्क: 9411707470, 9411793190, 9411347601


प्रस्तुति: मनोहर चमोली ‘मनु’

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By manohar

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