महीनों-उत्सवों और भारतीय परम्पराओं की त्रिवेणी
सुधा भार्गव कृत बाल कहानी संग्रह ‘उत्सवों का आकाश’ श्वेतांश प्रकाशन से आया है। साल 2023 में ताज़ा कहानी संग्रह उत्सवों को ध्यान में रखी किताब है। नये साल, वेलेंटाइन डे, होली, सावन, राखी, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, विजयदशमी, दीवाली, क्रिसमस केन्द्रित कहानियां हैं। कुछ कहानियों में चम्पू विधा का उपयोग भी किया गया है।
वरिष्ठ कथाकार सुधा भार्गव उन चुनिंदा साहित्यकारों में शुमार हैं जो चुपचाप साहित्य साधना में रत हैं। वे साहित्यिक गुटबन्दी, राजनीतिक विचारों के द्वंद्व से हटकर साहित्यिक मक़सदों के उत्सवों में ज़्यादा एकाग्र हैं। नौ से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। दिलचस्प बात यह है कि ई प्रकाशन में भी उनकी ग्यारह किताबें आ चुकी हैं। बाईस साल अध्यापन कार्य के बाद अब स्वतंत्र साहित्य साधना में जुटी हुई हैं। इन दिनों बंगलुरु में हैं। दस से अधिक देशों का भ्रमण कर चुकी साहित्यकार सुधा भार्गव बाल साहित्य में एक चिर-परिचित नाम हैं।
सुधा भार्गव सिद्धहस्त लेखिका हैं। बाल साहित्य के साथ-साथ भाषा में उनकी पकड़ सुदृढ़ है। उन्हें परम्परा और रीति-रिवाज़ों के समर्थन में कहानियां लिखनी चाहिए। यह उनका फैसला है। इसमें कदाचित कोई बुराई भी नहीं है। भारत त्योहारों-पर्वों का देश है। लेकिन त्योहारों को मनाने के पीछे जो वैज्ञानिक नज़रिया है और सामाजिक समरसता है, उसे अधिक केन्द्र में लाने की आवश्यकता है।
सुधा भार्गव कई कहानियों में बच्चों को संबोधित करती हैं। इससे पाठक के मन में कहानी सुनने का भाव भी आ जाता है। यह एक अलग तरह का आनंद देता है। विद्यालयी पुस्तकालयों में त्योहारों-पर्वो पर आधारित कविताएं-कहानियाँ गाहे-बगाहे खूब खोजी जाती है। इस लिहाज से संभवतः लेखिका ने इस संग्रह को प्रकाशित करने का मन बनाया होगा। बहरहाल, बच्चे इस किताब को अवश्य पढ़ना चाहेंगे। लेखिका ने बाल मन की दुनिया के आस-पास का परिवेश कहानियों में लिया है। मनुष्य के आस-पास के जीवों पर भी लेखिका का ध्यान गया है। यह भी अच्छी बात है।
ईद पर कोई कहानी क्यों नहीं बन पाई होगी? यह सवाल जरूर उठता है। प्रकाशन ने चित्रों में तनिक भी मेहनत नहीं की है। कवर पेज बहुत ही मजबूत है। यह अच्छी बात है। कागज की गुणवत्ता शानदार है। फोन्ट अच्छा है। छपाई गहरे काले रंग में हैं। फोंट का आकार बच्चों के अनुकूल है। प्रत्येक कहानी दांये पेज से ही शुरु की गर्इ्र है। इसके लिए बांया पेज खाली छोड़ दिया गया है। यदि प्रकाशक सूझ-बूझ से काम लेता तो प्रस्तुत हो रही कहानी पर केन्द्रित पूरे पेज पर चित्र दिया जा सकता था। 96 पेज की पुस्तक में दस पेज छोड़़ दिए गए हैं। इन पेजों का इस्तेमाल करते तो दो कहानियाँ और भी शामिल हो सकती थीं। एक कहानी का शीर्षक ‘नाग देवता’ ज़रूर अटपटा लगा। बहरहाल, आज के बच्चों को इस किताब में बहुत कुछ जानने-समझने को मिलेगा। यह भी संभव है कि उन्हें एक जगह पर दस त्योहारों के बारे में इससे पहले कभी कुछ पढ़ने को मिला भी नहीं हो।