जी हाँ ! शिक्षक मुकेश प्रसाद बहुगुणा पर कार्रवाई तो होगी।
जब किसी कथित समाजसेवी की शिकायत पर विभाग ने त्वरित गति से फौरी गतिविधियाँ संचालित की हैं तो फाइल बन गई है। फाइल दाखि़ल दफ्तर होने से पहले अपने अन्तिम परिणाम तक तो पहुँचेगी।
आखिर इस मामले में होगा क्या? पहले आरोपी पक्ष की बात कर लेते हैं। आखिर मुकेश प्रसाद बहुगुणा क्या-क्या कर सकते हैं-
1-वह अपना लिखित कथन यानि बयान दे सकते हैं। जो उन्होंने दे दिया होगा।
2-वह विभाग से पूछ सकते हैं कि शिकायतकर्ता की सम्पूर्ण जानकारी उन्हें भी उपलब्ध कराई जाए। हालांकि, कोई सरकार या विभाग चाहे तो गुमनाम, अनाम या छद्म नाम पर की गई शिकायत पर संज्ञान ले सकता है।
3-इस मामले पर फाइल दाखि़ल दफ्तर होने के बाद मुकेश प्रसाद बहुगुणा नाम से शिकायत कर्ता पर, शिकायतकर्ता की शिकायत पर विधिक कार्रवाई करने वाले व्यक्ति पर, नाम से या पदनाम से (पदनाम से इसलिए कि क्या पता कार्रवाई को करते-करते पदाधिकारी ही बदल जाए या वह सेवानिवृत्त हो जाए) मानहानि का मुकदमा मुंसिफ स्तर की अदालत में दायर कर सकते हैं।
4-इस मामले में खेद व्यक्त कर सकते हैं।
5-शिकायतकर्ता से अपनी शिकायत वापिस लेने का अनुरोध कर सकते हैं।
बिन्दु 4 and 5 वाला कृत्य मुकेश जी को नहीं करना चाहिए। क्यों? क्योंकि-
राज्य कर्मचारी आचरण नियमावली के तहत उन्होंने किसी भी नियम का उल्लंघन मेरी दृष्टि में नहीं किया है।
अच्छा देखते हैं कि जिस तरह उन पर कथित कार्रवाई की सूचना सोशल मीडिया से मिल रही है उसका आधार क्या है?
एक राजकीय शिक्षक या कर्मचारी या लोक सेवक के लिए राज्य की आचरण नियमावली इस मुद्दे पर कहती क्या है?
नियमावली का बिन्दु 6- –
समाचार पत्रों (Press) या रेडियो से सम्बन्ध रखना-
(1) कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के जबकि उसने राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी समाचार-पत्र या अन्य नियतकालिक प्रकाशन (Periodical publication) का पूर्णतः या अंशतः, स्वामी नहीं बनेगा, न उसका संचालन करेगा, न उसके सम्पादन या प्रबन्ध में भाग लेगा।
(2) कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय उस दशा के जबकि उसने राज्य सरकार की या इस सम्बन्ध में सरकार द्वारा अधिकृत किसी अन्य प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो अथवा जब वह अपने कर्त्तव्यों का सद्भाव से निर्वहन कर रहा हो, किसी रेडियो प्रसारण में भाग नहीं लेगा या किसी समाचार-पत्र या पत्रिका को लेख नहीं भेजेगा और छदमनाम से अपने नाम में या किसी अन्य व्यक्ति के नाम में, किसी समाचार-पत्र या पत्रिका का कोई पत्र नहीं लिखेगा.
परन्तु उस दशा में जबकि ऐसे प्रसारण या ऐसे लेख का स्वरूप केवल साहित्य, कलात्मक या वैज्ञानिक हो, किसी ऐसे स्वीकृत पत्र (Broadcast) के प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी।
नोट : तो आप स्वयं पढ़कर समझ रहे होंगे कि साहित्य,कलात्मक और वैज्ञानिक लेखन की स्वीकृति तक की आवश्यकता नहीं है। तो आलोचना कैसी?
नियमावली सरकार की आलोचना पर भी स्पष्ट है। नियमावली बिन्दु 7 अवश्य पढ़ें।
वह यह है-
सरकार की आलोचना-
कोई सरकारी कर्मचारी किसी रेडियो प्रसारण में या छदम्नाम से, या स्वयं अपने नाम में या किसी अन्य व्यक्ति के नाम में प्रकाशित किसी लेख में या समाचार-पत्रों को भेजे गये किसी पत्र में, या किसी सार्वजनिक कथन (Public utterance) में कोई ऐसी तथ्य की बात (Statement of fact) या मत व्यक्त नहीं करेगा-
(1) जिसका प्रभाव यह हो कि वरिष्ठ पदाधिकारियों के किसी निर्णय की प्रतिकूल आलोचना हो या उत्तरांचल सरकार या केन्द्रीय सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी की किसी चालू या हाल की नीति या कार्य की प्रतिकूल आलोचना हो;
अथवा
(2) जिससे उत्तरांचल सरकार और केन्द्रीय सरकार या किसी अन्य राज्य की सरकार के आपसी सम्बन्धों में उलझन पैदा हो सकती हो,
अथवा
(3) जिससे केन्द्रीय सरकार और किसी विदेशी राज्य की सरकार के आपसी सम्बन्धों में उलझन पैदा हो सकती हो
परन्तु इस नियम में व्यक्त कोई भी बात किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा व्यक्त किए गए किसी ऐसे कथन या विचारों के सम्बन्ध में लागू न होगी, जिन्हें उसने अपने सरकारी पद की हैसियत से या उसे सौंपे गये कर्तव्यों के यथोचित पालन में व्यक्त किया हो।
नोट- अतः स्पष्ट है कि मुकेश प्रसाद बहुगुणा ने कहीं भी भारत सरकार, उत्तराखण्ड सरकार यहां तक कि किसी विदेशी सरकार की आलोचना नहीं की है। नासा से अभिप्राय नाना साले का गठबंधन भी हो सकता है। नासपीट्टे साजिशवाद समूह का नाम भी हो सकता है। नासा से अभिप्राय कोई कैसे नेशनल एरोनोटक्स स्पेस एडमिनस्ट्रेशन से लगा लेगा? क्या उसका पता भी वहां लिखा गया है?
और हाँ एक बात जो हमारे शिक्षकों के मध्य बुरी तरह से भय फैलाती है कि हमें हर चीज़ की अनुमति विभाग या सरकार से लेनी पड़ती है तो नियमावली में यह लिखा है-
2- यह भी निश्चित किया गया है कि उत्तरांचर, प्रदेश सरकारी कर्मचारियों की आचरण नियमावली, 2002 के नियम 13 के अधीन सरकारी कर्मचारियों द्वारा ऐसी साहित्यिक, कलात्मक और वैज्ञानिक किस्म की रचनाओं के प्रकाशन के लिये सरकार की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है जिनमें उनके सरकारी कार्य से सहायता नहीं ली गई है और प्रतिशत के आधार पर स्वामित्व (Royalty ) स्वीकार करने का प्रस्ताव नहीं किया गया है। किन्तु सरकारी कर्मचारी को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि प्रकाशनों में उन शर्तों का कड़ाई से पालन किया गया है जिनका उल्लेख ऊपर प्रस्तर-1 में किया गया है और उनसे सरकारी कर्मचारियों की आचरण नियमावली के उपबन्धों का उल्लंघन नहीं होता है।
पुनश्च: तो कुछ भी नहीं बनता है। उलट मानसिक और सामाजिक मान-सम्मान और प्रतिष्ठा पर आंच बनती है। मुकेश प्रसाद बहुगुणा जी को यह अधिकार होगा कि उपरोक्त कार्रवाई हो चुकने के बाद वह सक्षम आदलत में न्याय की गुहार कर सकते हैं।
आइए अब उस पोस्ट को भी पढ़ लें जिस पर इतना बवाल मचा है बल –
मुकेश प्रसाद बहुगुणा जी ने फेसबुक पर यह लिखा-
1 ब्रेकिंग न्यूज़……
नासा के शिक्षा अधिकारियों और सत्यानाशा के प्रशासनिक अधिकारियों की एक साझा शोध में साबित किया गया है कि बारिश रोकने के लिए ‘‘धनसिंह एप’’ की बजाय स्कूल की छुट्टी का सरकारी परमादेश ज्यादा असरकारी रहता है……
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