शिक्षा त्रिपाठी कृत ‘टीने और दूस बसे पर्वत’ किताब प्रथम बुक्स ने प्रकाशित की है। किताब के आकर्षक चित्र ओगिन नयम ने बनाए हैं। आवरण आकर्षित करता है। उन पाठकों के लिए यह खास किताब हैं जिन्होंने पहाड़ नहीं देखे हैं। वे इस किताब के जरिए पहाड़ और पहाड़ी जीवन की कल्पना कर सकते हैं। पहाड़ के इंसान को इस किताब से लगाव रहेगा ही। कारण? इस किताब में पहाड़ की मुश्किलों की ताप उसे महसूस होगी।
हालांकि किताब टीने मेना पर्वतारोही पर है। एक तरह से उस लड़की के जीवन और अदम्य साहस यानि एवरेस्ट पर चढ़ने की यात्रा पर केंन्द्रित है। आरम्भ में पाठक को सूचनात्मक और तथ्यात्मक किताब लग सकती है। लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है तो पाठक अनायास टीने से जुड़ता चला जाता है। वह जानना चाहता है कि एक छोटी बच्ची जो पहाड़ी जीवन में अपने बचपन को जी रही है उसके साथ समय कैसे आगे बढ़ रहा है।
टीने मेना अरुणाचल प्रदेश की मिशमी पहाड़ियों में रहती है। प्रकृति की गोद में पल-बढ़ रही टीने के लिए इचाली में कोई स्कूल नहीं था। यही कारण था कि उसकी पढ़ाई दस साल बाद पूरी हो पाई। उसने कुली के लिए आवेदन किया। यह आवेदन आर्मी अभियानद ल के लिए था। वह लड़की थी तो सो उसका आवेदन स्वीकार नहीं किया गया। लेकिन टीने ने लड़कों के कपड़े पहनकर कुली का काम किया। वह हर रोज पच्चीस किलो वजन उठाती। लेकिन एक सप्ताह में ही सबको पता चल गया कि वह लड़के के भेष में लड़की है। पहाड़ी यात्राओं की योजना बनाने के साथ ही जीवन में पर्वतारोही बनने की इच्छा को पूरा करती है। बस इसी के आस-पास यह कहानी बुनी गई है।
टीने के संघर्ष को उसके सच के साथ कहानीपन में संजोना आसान नहीं था। आसान लगा भी नहीं। इस तरह की कहानियाँ भी पसंद की जाती हैं बशर्ते उसमें कहानीपन हो। यह किताब इसलिए भी पसंद की जाएगी क्योंकि इसके चित्र मौलिक बन पड़े हैं। ओगिन नयम यूँ तो दृश्य कलाकार हैं। लेकिन उन्होंने असल चित्रों में अपनी कल्पना के रंग तो भरे ही हैं तभी किताब के चित्र कैमरे के चित्रों से भी अधिक प्रभावी हैं।
शिखा त्रिपाठी हिमालय की बेटी है। उत्तराखण्ड में पत्रकारिता से जुड़ी रही हैं। वह स्वयं घुमक्कड़ का साहस करती है। पहाड़ में पहाड़ के जीवन को खोजती है। यही कारण है कि उन्होंने उत्तर पूर्व भारत से पहली माउंट एवरेस्ट फ़तह करने वाली पहली महिला टीने मेना के बारे में लिखा।
यह पुस्तक बाल पाठकों के लिए है। प्रथम बुक्स का मानना है कि यह किताब प्रवीण पाठकों के लिए हैं जो किताबें पढ़ने में माहिर हैं। लेकिन इस किताब के चित्र इतने लुभावने हैं और कमोबेश भाषा भी सरल है तो स्वयं पढ़ने की दिशा में अग्रसर हो चुके बच्चे भी इस किताब को पढ़ना चाहेंगे। मुखावरण का काग़ज़ मजबूत है। भीतर के पन्ने भी गुणवत्ता के लिहाज़ से बहुत अच्छे हैं। आकार भी अच्छा है।
कहानी पढ़ने के बाद यह बात समझ में आती है कि बालमन की एक खासियत यह भी होती है कि बाल सुलभ मन में जाने कौन-सी बात घर कर जाए और वही बात उसके जीवन का खास बिन्दु बन जाए।
कहानी पढ़ते-पढ़ते और चित्रों को निहारते हुए पाठक उच्च हिमालयी क्षेत्र की कल्पना करता है। वह रोमांच से भी भर जाता है। शून्य डिग्री सेल्सियस पर पानी जम जाता है। यह बात तो सब जानते हैं। लेकिन पूरे वातावरण में बर्फ ही बर्फ हो और समुद्र तल से आठ हजार आठ सौ मीटर की ऊँचाई पर पहुँचना कोई आसान काम तो नहीं है। इसकी कल्पना करना भी अपने आप में रोमांच से भर देता है।
जीवन के यथार्थ की कहानियाँ भी बालमन को रोमांच और आनन्द प्रदान कर सकती हैं। बशर्ते कहानी यह आग्रह न करे कि देखो बच्चों तुम्हे भी ऐसा करना चाहिए। एक बात कहानीकारों को अभी समझने की जरूरत है कि यदि प्रेरणास्पद कहानियाँ लिखना निहायत ही जरूरी लगता है तो लिखें लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि पाठकों से नायक के आदर्शो पर चलने का तीव्र आग्रह किया जाए। महात्मा गाँधी जैसा कोई नहीं हो सकता। यदि होता तो गाँधी जी के बच्चे भी गाँधी जैसे होते! क्यों नहीं हुए? भारत रत्न प्राप्त व्यक्तित्वों की कहानियों को इसलिए नहीं दिया जाना चाहिए कि हर बच्चे से भारत रत्न की उम्मीद की जाए। भारत रत्न की उम्मीद बुरी नहीं है। लेकिन वह दूसरी उपलब्धियों, नई उपलब्धियों या विशेष उपलब्धियों के लिए क्यों न मिले?
किताब: टीने और दूर बसे पर्वत
लेखक: शिक्षा त्रिपाठी
चित्रांकन: ओगिन नयम
हिन्दी अनुवाद: पूनम एस. कुदेसिया
मूल्य: 50 रुपए
पृष्ठ: 22
प्रकाशन वर्ष: 2018
दूसरा संस्करण: 2019
प्रकाशक: प्रथम बुक्स
प्रस्तुति: मनोहर चमोली मनु
सम्पर्क: 7579111144
मेल : chamoli123456789@gmail.com
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