एक मुलाकात : बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं समीर गांगुली

समीर गांगुली साहित्य जगत में जाना-पहचाना नाम है। अड़सठ वर्षीय समीर मुंबई में रहते हैं। बाल साहित्य लेखन में कई दशकों से सक्रिय हैं। पटकथा लेखन के साथ-साथ वह विज्ञापन की दुनिया के लिए भी काम करते हैं। ज़ाहिर-सी बात है कि फिल्मों से जुड़ाव भी होगा। खूब फिल्में देखते हैं। यह सही भी है। लेखन जगत में जिस तरह पढ़ना लिखना के साथ-साथ बेहद ज़रूरी है उसी तरह यदि सिने जगत के लिए लेखन-संवाद-पटकथा आदि लेखन करना है तो नई-पुरानी फिल्में देखना ज़रूरी है।


समीर गांगुली जी से मुलाकात नहीं थी। कभी मिलने का अवसर भी नहीं मिला। लेकिन मैं उन्हें उनके लेखन से जानता हूँ। सोशल मीडिया ने दूरियां तो कम की ही है। हम हजारों लोगों को आभासी दुनिया में जानते हैं भले ही मुलाकात न हुई हो। समीर जी से दो-एक मौकों पर फोन पर बात हुई थी। सोशल मीडिया में हम एक-दूसरे की भित्ति पर अक्सर विचरण करते रहे हैं। यदा-कदा कमेंट भी कर लेते हैं।


मुंबई जाने का मौका मिला तो समय मिलते ही हम उनसे मिलने चल पड़े। दीगर बात यह है कि उनसे मिलने की उत्कंठा कम थी। समीर जी ने ही पहल की और वह हमसे मिलना ही चाहते थे। मैं से हम इसलिए कि दीनदयाल शर्मा जी और अपन उनके स्नेह से भरे आमंत्रण पर उनके घर जा पहुँचे। अंधेरी ईस्ट क्षेत्र देखने का मौका मिला। लीना गांगुली जी ने शानदार चाय पिलाई। बैंगन के पकौड़े खिलाए। पकौड़ बहुत ही स्वादिष्ट थे। पूछा तो पता चला कि बेसन के साथ चावल का आटा मिला हुआ है। पकौड़े करकरे थे। यही कारण था कि वह और भी ज़ायकेदार बन पड़े थे। भोजन अपनत्व से भरा परोसा गया। बहुत ही आनन्द आया। पनीर के गोल पकौड़ेनुमा डिश भी हमें खूब पसंद आई। बिटिया हिमिका से भी मुलाकात हुई। वह भी लिखती हैं। अंग्रेज़ी में लिखती हैं। अंग्रेज़ी साहित्य के स्तर और वहां के स्पेस पर भी बात हुई।


समीर गांगुली जी शेयर बाज़ार में भी दिलचस्पी रखते हैं। घूमने के शौकीन भी है। मेल-मुलाकाती हैं। आज जब चारों ओर मैं-मैं बस मैं ही मैं की धूम मची है। साहित्यकार झूठ के आवरण में लिपटे हुए हैं। वे भी जिनकी दस-बारह किताबें आ गई हैं नवोदितों की पहली पुस्तक छापने वाली योजना में भी पाण्डुलिपि भेजे दे रहे हैं। माना दिल्ली के हैं और केरल राज्य का कोई लेखकीय पुरस्कार है तो खुद को केरलवासी बताने की हिक़मत करने से बाज़ नहीं आते। वहीं दूसरी ओर समीर जी भी है जो सुनना अधिक पसंद करते हैं। सुनाने में उनकी कम दिलचस्पी है। रचनात्मक हैं। उनकी अवलोकन दृष्टि गजब की है। समझते सब हैं लेकिन बहुत ज़रूरत पड़ने पर ही टिप्पणी करते हैं।

बाएं से दीनदयाल शर्मा, अपन, समीर गांगुली और लीना जी


बातों-मुलाकातों के सिलसिले में साहित्यिक चर्चा भी होनी ही थी। बाल साहित्य की दशा-दिशा पर चर्चा हुई। लेखकों की अस्मिता पर भी बात हुई। लेखकीय दायित्व पर बात हुई। साहित्यकारों की सामाजिक सन्दर्भ में चुप्पी पर बातें हुईं। ‘स्वान्तः सुखाय’ से लेकर ‘निजी लाभाय’ पर बात हुई। समीर जी चिन्तित हैं कि बाल साहित्य के स्तर पर गंभीर गोष्ठियाँ-सेमिनार नहीं होते। ऐसे आयोजनों की नितांत आवश्यकता है जहाँ साहित्यकार आवासीय स्तर पर जुटे। दो-तीन दिन जमकर विमर्श करें। साहित्य की दशा-दिशा-प्रयोजन और खामियों पर बात हो। पत्र-पत्रिकाओं में सम्मानार्थ लेखन सिमटता जा रहा है। इस दिशा में क्या हो सकता है? कैसे सार्थक लेखन हो? लिखने के अवसर बढ़ाए जाएं। वरिष्ठ लेखक अपने अनुभवों से नवोदितों का मार्ग प्रशस्त कैसे कर सकते हैं? पुरस्कारों-सम्मानों, पुस्तकों के प्रकाशनों और साहित्य के नए मंच पर साहित्यकारों की क्षमता का कैसे उपयोग हो? इस पर चर्चा हुई। समय की बाध्यता थी। हम शहर में नए-नए थे। सिद्धिविनायक मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, हाजी अली की दरगाह, मरीन ड्राइव, गेट वे ऑफ इंडिया, होटल ताज़, समुद्र का किनारा देखने की इच्छा भी थी और समय कम था। समय की नज़ाकत के चलते हमें समीर जी से विदा लेनी पड़ी।


बता दूँ कि अपन मुंबई जा रहे थे। उत्तराखण्ड के पौड़ी से मुझे जीप मिल गई। ऋषिकेश पहुँचते-पहुँचते ही चार घण्टे लग गए। मोबाइल घनघनाया। समीर गांगुली जी का नंबर स्क्रीन पर उभर आया। वह मुंबई में रहते हैं। साहित्यकारों का सम्मेलन मुंबई में हो रहा है। उन्हें निमंत्रण न हो। ऐसा कैसे हो सकता है! बात होने लगी। उन्होंने पूछा,‘‘आ रहे हो न?’’ मैंने कहा,‘‘आ नहीं रहा हूँ बल्कि चल पड़ा हूँ। उनकी आवाज़ में खुशी मिश्रित थी। साधिकार बोले,‘‘बढ़िया ! आप चाहें तो घर आ सकते हैं।’’ मैंने बताया कि एक युवा मित्र से बात हुई है। वह किसी गेस्ट हाउस में रुकवाने का बंदोबस्त कर रहे हैं। यदि कुछ बात नहीं बनी तो मैं आपके घर आ जाऊँगा। वह बेहद अपनत्व से बोले,‘‘बिल्कुल। निसंकोच।’’


मेरे मुंबई पहुँचने से पहले समीर गांगुली जी ने कम से कम चार बार सम्पर्क साधा। मैं पहली बार मुंबई आ रहा हँू। यह जानकर शायद, वह ज़्यादा गंभीर और सतर्क हो गए। आयोजन स्थल पर ही सीधे जाना कुछ अजीब-सा लग रहा था। वह भी दो दिन पहले कैसे और क्यों कोई बन्दोबस्त करेगा? यह सोचकर परेशान होना स्वाभाविक था। असमंजस की स्थिति से बाहर निकलकर मैंने आयोजक साथियों से बात की। सकारात्मक जवाब मिला। यह बात हो गई कि आप आयोजन स्थल पर आइए। इन्तज़ाम हो जाएगा। रहने की चिन्ता मिट गई। मैंने तुरंत समीर जी के मोबाइल पर सम्पर्क साधा।

वह बोले,‘‘बढ़िया। लेकिन, फिर भी कोई दिक्कत हो तो बताना। पहुँचने पर मुझे मैसेज ज़रूर कर देना।’’

बाएं से दीनदयाल शर्मा, और अपन। मुंबई की मैट्रो का सफर


दरअसल मैं हरिद्वार-ब्रान्द्रा एक्सप्रेस रेल से जा रहा था। वह रात 11 बजे बान्द्रा पहुँच रही थी। समीर जी ने परामर्श दिया। बताया,‘‘वहाँ से आपको बहुत यात्रा करनी पड़ेगी। आप एक स्टेशन पहले बोरोवली उतर जाइएगा। बोरोवली से आपको मीरा रोड़ के लिए ट्रेन पकड़नी होगी। लोकल। मीरा रोड़ से आप नंदनवन के लिए चले जाइएगा।’’
यह सब मेरे लिए आसान न था। समीर जी ने मुझे कह दिया था कि मैं सम्पर्क में रह सकता हूँ। मित्र रविन्द्र भण्डारी जो आईआईटी में अध्ययनरत् हैं वह भी लगातार सम्पर्क में थे। उन्हें भी मैंने बता दिया कि रहने की व्यवस्था हो गई है। उन्होंने भी मुझे आने-जाने की सुविधा के बारे में बता दिया। राजेश मेहता जी ने भी मुझे पता भेज दिया था। आयोजन स्थल के सम्पर्क सूत्र का मोबाइल नंबर भी दे दिया था।

उसी के क्रम में मैं बोरोवली उतरा। बोरोवली से मीरा रोड़ ईस्ट, गोड़बंदर रोड के लिए बस पकड़ी। लेकिन बस चालक ने होटल सी एंड रॉक की जगह पहले ही वेस्टर्न होटल के निकट उतार दिया। वह नंदनवन या होटल फाउण्टेन से परिचित थे लेकिन नंदनवन-सी एंड रॉक से नहीं। फिर आयोजकों को फोन किया तो उन्होंने लोकेशन के अनुसार आने के लिए कहा। अस्थाई आयोजन का ठीक-ठीक पहचान मैप नहीं कर पा रहा था। ऑटो का सहारा लेना पड़ा। कई आटो भी ठीक-ठीक आयोजन स्थल को पहचान नहीं पा रहे थे। एक ऑटो को मोबाइल स्क्रीन पर पता दिखाया तो ऑटो पर बैठी सवारी ने कहा कि इन्हें आचार्य महाश्रमण के स्थल पर जाना है। तब सांस में सांस आई। इस पूरी प्रक्रिया में रात के बारह कब के बज चुके थे। बिना भोजन किए सो गया।


रात बारह बजे ही समीर जी को मैसेज किया कि मैं पहुंच गया हूँ। पन्द्रह की सुबह छह बजे से पहले ही समीर जी ने लिखा-‘‘मुंबई में स्वागत ! आज मिलते हैं!’’ टाबर टोली के संपादक दीन दयाल शर्मा जी हनुमानगढ़ से सुबह पधारने वाले थे। मैंने मोबाइल की स्क्रीन टटोली। उनका कोई फोन नहीं आया। फोन मिलाया तो वह नाराज़गी के लहज़े में बोले,‘‘आपका मोबाइल स्विच ऑफ था। मैं बस नंदनवन पहुँच ही रहा हूँ।’’


आयोजन स्थल पर सात बजे से पहले ही नाश्ता लग चुका था। मैंने नब्बे रुपए का टोकन लिया और नाश्ता करने लगा। बहरहाल आठ बजे से पहले ही दीन दयाल जी के आवास का प्रबन्ध भी हो गया। वह थके हुए भी थे और स्नानादि भी करना चाह रहे थे। मैं आज के दिन का भरपूर उपयोग करना चाहता था। नंदनवन से बाहर आया ही था कि समीर जी ने फिर सम्पर्क साधा। अब दुविधा यह थी कि अकेले जाऊँ या दीनदयाल जी भी चलेंगे? मैंने वस्तुस्थिति से अवगत कराया और सुझाया कि वह दीनदयाल जी का मंतव्य जान लें तब जैसा होगा सोच लेंगे। दीनदयाल जी भी तैयार हो गए लेकिन वह तैयार होते-होते दस बजवा गए। खैर . . . । एक से भले दो।
अपन और दीनदयाल जी अनजाने शहर में अनजानी जगह पर पहली बार चल पड़े। हालांकि समीर जी ने हमें लोकेशन भेज दी थी। मुंबई के ट्रैफिक के बारे में बता दिया था। हम दोनों ने ऑटो लिया। मीरा रोड स्टेशन गए। वहाँ से हमने दहीसर पूर्व ईस्ट जाना था। हम ने गुंडावली ट्रेन से मोगरा स्टेशन के लिए मैट्रो ली और हम पम्प हाउस के पास उतर गए।

बाएं से दीनदयाल शर्मा, और अपन। मुंबई की मैट्रो का सफर।


समीर जी हमे लेने मैट्रो स्टेशन पर पहले से ही खड़े थे। हम लपक कर गले मिले। हम दोनों से वह बहुत ही आत्मीयता और गर्मजोशी के साथ मिले। फिर हम पैदल-पैदल उनके घर पहुँच गए। वह देहरादून में पले-बढ़े हैं। धर्मपत्नी लीना जी देहरादून की ही हैं। यह जानकर और भी खुशी हुई। वह धार्मिक हैं तो उनकी आस्था के सम्मान करते हुए समीर जी लीना जी सहित बारह ज्योतिर्लिंगों में से ग्यारह का भ्रमण कर चुके हैं। भ्रमण ही है जो हमारे अनुभवों को समृद्ध करता है। हमारे लेखन में हमें चुकने नहीं देता।

समीर गांगुली का लेखन इसलिए भी एक अलग धारा की तरह पाठकों के जे़हन में ठण्डक देता है क्योंकि वह विज्ञान और मानविकी दोनों के अध्येता है। गणित में परास्नातक होने के साथ-साथ वह हिन्दी साहित्य में भी परास्नातक हैं। उपन्यास के साथ कहानी लेखन में उनका मन रमता है। वह कहानियों में कल्पना का सिरा छूटने नहीं देते। इसी कल्पना लोक के बूते पाठक में जिज्ञासा जगा पाते हैं। मुझे याद है िकवह धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, मेला, लोटपोट, पराग और बाल भारती जैसे पत्र-पत्रिकाओं में उस दौर में लिखते रहे हैं जब हम युवावस्था में कदम रख रहे थे।


बाल साहित्य की ओर देखें तो उनके तीन बाल उपन्यास चर्चा में रहे हैं। नया घर, डॉ॰ जे़ड. ज़ुइंग की डायरी के अलावा रंगीली, बुलेट और वीर। बाल कहानियों के संग्रह में बच्चों की खट्टी-मिठी कहानियाँ, कहानी पार्क, भोला की भोलागिरी, आदी पादी दादी प्रमुख हैं। जल्द ही भूतों के किस्सों की एक किताब आने वाली है। वह अनुवाद का काम भी लगातार करते रहे हैं। रेडियो के साथ फिल्मों के लिए लेखन उनका बड़ा काम रहा है। धारावाहिक और टेलीफिल्मों के लिए संवाद लेखन में वह आज भी सक्रिय है।


समीर जी की संवेदनशीलता ही है कि उन्हें भी चालाकियाँ परेशान करती हैं। वह भी बेवजह की निन्दाओं से परेशान हैं। उनका मानना है कि साहित्य जगत तभी रोशननुमा होगा जब साहित्यकार जीवन में भी सामाजिक हों। चुपचाप निजी लाभार्थ हेतु लेखन समाज का भला नहीं करने वाला है। पहली और संक्षिप्त ही सही। यह मुलाकात मेरे लिए बहुत मायने रखती है। समीर जी जैसे लेखक भी हैं जो चाहते हैं कि सब कुछ साझा हो। अति और वह भी निज लाभ की चाह दूरियाँ ही बढ़ाती हैं। हम दोनों समीर जी से मिलकर प्रसन्न हुए। मिलने से पहले और मिलने के बाद हासिल समृद्धता का कोई पैमाना नहीं है। कुछ बेहतरीन अहसासात लेकर लौटा हूँ। यह कहना गलत न होगा।

समीर गांगुली जी से आप उनके मोबाइल नंबर 9819424390 पर सम्पर्क कर सकते हैं। और हाँ ! उनका मेल पता samir.g1127@gmail.com पर भी कुशल-क्षेम पूछ सकते हैं।

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मनोहर चमोली ‘मनु’
यात्रा तिथि: 15 नवम्बर 2023

Mobile : 7579111144

चर्च गेट से वसई रोड़ द्वितीय श्रेणी लोकल रेल का टिकट
मुंबई में दहीसर ईस्ट से गुंडवली मैट्रो का टिकट
समीर जी अपनी बिटिया हिमिका के साथ

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By manohar

2 thoughts on “समीर गांगुली की रचनाओं में भारत दिखाई देता है”
  1. बहुत सुंदर संस्मरण। समीर जी से मेरी भी मिलने की इच्छा है। उम्मीद है जल्द ही पूरी होगी।

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