-मनोहर चमोली ‘मनु’
शैक्षिक दख़ल अब हर अंक में बाल पाठकों को ध्यान में रखते हुए सरल और सहज साहित्य भी प्रकाषित करेगा। यह ज़रूरी भी है। आज जो बच्चे हैं कल वे समग्र साहित्य के पाठक भी होंगे। पढ़ने की आदत यदि बच्चों में नहीं है तो तय है कि संभवतः वह आगे चलकर साहित्य के पाठक न ही बनें। विष्वविद्यालय स्तर पर छात्र काॅलेज के पुस्तकालय के सदस्य बनते हैं। किताबें पढ़ने के लिए लेते भी हैं। लेकिन यह किताबें पाठ्य पुस्तकों की सन्दर्भ पुस्तकें ही अधिकतर होती हैं। काॅलेज की लाइब्रेरी अपने यहां पाँच-सात साल बिताने वाले छात्रों में भी पढ़ने की ललक नहीं जगा पाती। जनपदों के पुस्तकालयों में नियमित पढ़ने आने वाले पाठकों की संख्या निराष ही करती हैं। नियमित पाठकों में अधिकतर अख़बार पढ़ने के लिए आते हैं। यदि सार्वजनिक पुस्तकालयों के पाठकों का अध्ययन किया जाए तो यह संख्या लगातार घट रही है। कारण कई हैं। लेकिन एक बड़ा कारण पाठकों में बचपन के दौर में पढ़ने की आदत विकसित न होना भी है।
शैक्षिक दख़ल महसूस करती है कि उसके नियमित और गंभीर पाठक पढ़ने की आदत को बचाए और बनाए रखना चाहते हैं। शैक्षिक दख़ल के सैकड़ों पाठक षिक्षक भी हैं। बुनियादी विद्यालयों से लेकर माध्यमिक विद्यालयों के पुस्तकालयों को जीवन्त बनाना भी हमारी जिम्मेदारी है। इसी कड़ी में हम पत्रिका में बाल पाठकों को भी स्थान देना चाहते हैं। बच्चों के लिए साहित्य भी रहेगा और बच्चों का लिखा साहित्य भी होगा। यह सब आपके सुझाव और सहयोग से संभव हो सकेगा।
इस बहाने हम यह भी कहना चाहते हैं कि जिन बच्चों ने अभी-अभी स्कूल जाना शुरू किया है और जो बच्चे अभी स्कूल नहीं जाते। यदि उनके साथ बैठकर कुछ देर बातचीत की जाए तो हम पाते हैं कि जिन बच्चों ने स्कूल जाना शुरू किया है उसकी बातचीत में कई नए शब्द हमें सुनने को मिल जाते हैं। इस बहाने हम एक बात और कहना चाहते हैं। हमारे आस-पास वे बच्चे हैं, जिनके पास किताबों के नाम पर बस उनकी पाठ्य पुस्तकें ही हैं। दूसरे वे बच्चे हैं जिनके पास महीनें में एक-दो बाल साहित्य की किताबें हासिल हैं। जब हम उनसे बात करते हैं तो मात्र पाठ्य पुस्तकों पर आश्रित बच्चों का शब्दकोश बेहद सीमित दिखाई देता है। बाल साहित्य की किताबों से जुड़े हुए बच्चे लगातार और लगातार अपना शब्द भंडार अनायास ही बढ़ाते चले जाते हैं। इन दो तरह के बच्चों के बीच जो गहरा फासला बन जाता है यह लगातार और चैड़ा होता चला जाता है।
हम यह भी कहना चाहते हैं कि बतौर षिक्षक क्या हमारे घर में एक छोटा-सा पुस्तकालय नहीं होना चाहिए? यदि हम हर माह दो किताबें भी खरीदते हैं तो साल में चैबीस किताबें हमारे पुस्तकालय में होंगी। अगर औसतन हमने पच्चीस साल भी राजकीय सेवा की है तो इन पच्चीस सालों में हमारे निजी पुस्तकालय में छह सौं किताबें हांेगी। उत्तराखण्ड के पचास हजार राजकीय कार्मिक यदि हर माह दो किताबें खरीद कर पढ़ते हैं तो बारह लाख किताबें एक माह में खरीदी जाएंगी। यह आंकड़ा हवाई नहीं है। किताबें ही ऐसा माध्यम है जो बार-बार पढ़ी जा सकती हैं। सालों-साल पढ़ी जा सकती हैं। यूज़ एण्ड थ्रो वाला कनसेप्ट किताबों के साथ नहीं चलने वाला है।
तो आइए। इस अवसर पर हम पढ़ने की आदत विकसित करने के लिए बच्चों के साथ संवाद करें। पहले हम सरल और सहज कविता-कहानियों से ही शुरू करेंगे। आपको बच्चों के लिए उपलब्ध कराई जा रही सामग्री कैसी लगी, हमें अवष्य बताइएगा।
सफेद गुड़
-सर्वेष्वरदयाल सक्सेना
दुकान पर सफेद गुड़ रखा था। दुर्लभ था। उसे देखकर बार-बार उसके मुँह से पानी आ जाता था। आते-जाते वह ललचाई नज़रों से गुड़ की ओर देखता। फिर मन मसोसकर रह जाता। आखिरकार उसने हिम्मत की और घर जाकर माँ से कहा। माँ बैठी फटे कपड़े सिल रही थी। उसने आँख उठाकर कुछ देर दीन दृश्टि से उसकी ओर देखा। फिर ऊपर आसमान की ओर देखने लगी और बड़ी देर तक देखती रही। बोली कुछ नहीं। वह चुपचाप माँ के पास से चला गया। जब माँ के पास पैसे नहीं होते तो वह इसी तरह देखती थी। वह यह जानता था।
वह बहुत देर गुमसुम बैठा रहा। उसे अपने वे साथी याद आ रहे थे जो उसे चिढ़-चिढ़ाकर गुड़ खा रहे थे। ज्यों-ज्यों उसे उनकी याद आती, उसके भीतर गुड़ खाने की लालसा और तेज होती जाती। एकाध बार उसके मन में माँ के बटुए से पैसे चुराने का भी ख्याल आया। यह ख्याल आते ही वह अपने को धिक्कारने लगा और इस बुरे ख्याल के लिए ईष्वर से क्षमा माँगने लगा।
उसकी उम्र ग्यारह साल की थी। घर में माँ के सिवा कोई नहीं था। हालाँकि माँ कहती थी कि वे अकेले नहीं हैं। उनके साथ ईष्वर है। वह चूँकि माँ का कहना मानता था इसलिए उसकी यह बात भी मान लेता था। लेकिन ईष्वर के होने का उसे पता नहीं चलता था। माँ उसे तरह-तरह से ईष्वर के होने का यकीन दिलाती। जब वह बीमार होती। तकलीफ में कराहती तो ईष्वर का नाम लेती और जब अच्छी हो जाती तो ईष्वर को धन्यवाद देती। दोनों घंटों आँख बंद कर बैठते। बिना पूजा किए हुए वे खाना नहीं खाते। वह रोज सुबह-षाम अपनी छोटी-सी घंटी लेकर पालथी मारकर संध्या करता। उसे संध्या के सारे मंत्र याद थे। उस समय से ही जब उसकी जबान तोतली थी। अब तो वह साफ बोलने लगा था।
वे एक छोटे से कस्बे में रहते थे। माँ एक स्कूल में अध्यापिका थी। बचपन से ही वह ऐसी कहानियाँ माँ से सुनता था। जिनमें यह बताया जाता था कि ईष्वर अपने भक्तों का कितना ख्याल रखते हैं। और हर बार ऐसी कहानी सुनकर वह ईष्वर का सच्चा भक्त बनने की इच्छा से भर जाता। दूसरे भी उसकी पीठ ठांेकते और कहते-‘‘बड़ा शरीफ लड़का है। ईष्वर उसकी मदद करेगा।’’ वह भी जानता था कि ईष्वर उसकी मदद करेगा। लेकिन कभी इसका कोई सबूत उसे नहीं मिला था।
उस दिन जब वह सफेद गुड़ खाने के लिए बेचैन था, तब उसे ईष्वर याद आया। उसने खुद को धिक्कारा-‘‘उसे माँ से पैसे माँगकर माँ को दुखी नहीं करना चाहिए था। ईष्वर किस दिन के लिए है।’’ ईष्वर का ख्याल आते ही वह खुष हो गया। उसके अंदर एक विचित्र-सा उत्साह आ गया। क्योंकि वह जानता था कि ईष्वर सबसे अधिक ताकतवर है। वह सब जगह है और सब कुछ कर सकता है। ऐसा कुछ भी नहीं जो वह न कर सके। तो क्या वह थोड़ा-सा गुड़ नहीं दिला सकता? उसे जो कि बचपन से ही उसकी पूजा करता आ रहा है और जिसने कभी कोई बुरा काम नहीं किया। कभी चोरी नहीं की। किसी को सताया नहीं। उसने सोचा और इस भाव से भर उठा कि ईष्वर जरूर उसे गुड़ देगा।
वह तेजी से उठा और घर के अकेले कोनें में पूजा करने बैठ गया। तभी माँ
ने आवाज दी-‘‘बेटा। पूजा से उठने के बाद बाजार से नमक ले आना।’’ उसे लगा जैसे ईष्वर ने उसकी पुकार सुन ली है। वरना पूजा पर बैठते ही माँ उसे बाजार जाने को क्यों कहती। उसने ध्यान लगाकर पूजा की। फिर पैसे और झोला लेकर बाजार की ओर चल दिया।
घर से निकलते ही उसे खेत पार करने पड़ते थे। फिर गाँव की गली जो ईंटों की बनी हुई थीं। फिर वह बाजार की ओर चल दिया। उस समय शाम हो गई थी। सूरज डूब रहा था। वह खेतों में चला जा रहा था। आंखें आधी बंद किए ईष्वर पर ध्यान लगाए और संध्या के मंत्रों को बार-बार दोहराते हुए। उसे याद नहीं उसने कितनी देर में खेत पार किए। लेकिन जब वह गाँव की ईंटों की गली में आया तब सूरज डूब चुका था और अंधेरा छाने लगा था। लोग अपने-अपने घरों मंे थे। धुआँ उठ रहा था। चैपाए खामोष खड़े थे। नीम सर्दी के दिन थे। उसने पूरी आँख खोलकर बाहर का कुछ भी देखने की कोषिष नहीं की। वह अपने भीतर देख रहा था जहाँ अँधेरे में एक झिलमिलाता प्रकाष था। ईष्वर का प्रकाष और उस प्रकाष के आगे वह आँखें बंद किए मंत्रपाठ कर रहा था।
अचानक उसे अजान की आवाज़ सुनाई दी। गाँव के सिरे पर एक छोटी-सी मस्ज़िद थी। उसने थोड़ी-सी आँखें खोलकर देखा। अँधेरा काफी गाढ़ा हो गया था। मस्जिद के एक कमरे बराबर दालान में लोग नमाज़ के लिए इकट्ठे होने लगे थे। उसके भीतर एक लहर-सी आई। उसके पैर ठिठक गए। आँखें पूरी बंद हो गईं। वह मन ही मन कह उठा-‘‘ईष्वर यदि तुम हो और सच्चे मन से तुम्हारी पूजा की है तो मुझे पैसे दो। यहीं, इसी वक्त।’’ वह वहीं गली में बैठ गया।
उसने जमीन पर हाथ रखा। जमीन ठंडी थी। हाथों के नीचे कुछ चिकना सा महसूस हुआ। उल्लास की बिजली-सी उसके शरीर में दौड़ गई। उसने आँखें खोलकर देखा। अँधेरे में उसकी हथेली में अठन्नी दमक रही थी। वह मन ही मन ईष्वर के चरणों में लोट गया। खुषी के समुद्र में झूलने लगा। उसने उस अठन्नी को बार-बार निहारा। चूमा। माथे से लगाया। क्योंकि वह एक अठन्नी ही नहीं थी। उस गरीब पर ईष्वर की कृपा थी। उसकी सारी पूजा और सच्चाई का ईष्वर की ओर से इनाम था। ईष्वर जरूर है। उसका मन चिल्लाने लगा। भगवान मैं तुम्हारा बहुत छोटा-सा सेवक हूँ। मैं सारा जीवन तुम्हारी भक्ति करूँगा। मुझे कभी मत बिसराना। उलटे सीधे शब्दों में उसने मन ही मन कहा और बाजार की तरफ दौड़ पड़ा। अठन्नी उसने जोर से हथेली में दबा रखी थी।
जब वह दुकान पर पहुँचा तो लालटेन जल चुकी थी। पंसारी उसके सामने हाथ जोड़े बैठा था। थोड़ी देर में उसने आँख खोली और पूछा-‘‘क्या चाहिए?’’ उसने हथेली में चमकती अठन्नी देखी और बोला-‘‘आठ आने का सफेद गुड़।’’ यह कहकर उसने गर्व से अठन्नी पंसारी की तरफ गद्दी पर फेंकी। पर यह गद्दी पर न गिर उसके सामने रखे धनिए के डिब्बे में गिर गई। पंसारी ने उसे डिब्बे में टटोला पर उसमें अठन्नी नहीं मिली। एक छोटा सा खपड़ा चिकना पत्थर जरूर था जिसे पंसारी ने निकाल कर फेंक दिया। उसका चेहरा एकदम से काला पड़ गया। सिर घूम गया। जैसे शरीर का खून निकल गया हो। आँखें छलछला आईं।
‘‘कहाँ गई अठन्नी?’’ पंसारी ने भी हैरत से कहा। उसे लगा जैसे वह रो पड़ेगा। देखते-दखेते सबसे ताकतवर ईष्वर की उसके सामने मौत हो गई थी। उसने मरे हाथों से जेब से पैसे निकाले। नमक लिया और जाने लगा। दुकानदार ने उसे उदास देखकर कहा-‘‘गुड़ ले लो। पैसे फिर आ जाएँगे।’’
‘‘नहीं।’’ उसने कहा और रो पड़ा। ‘‘अच्छा पैसे मत देना। मेरी ओर से थोड़ा-सा गुड़ ले लो।’’ दुकानदार ने प्यार से कहा और एक टुकड़ा तोड़कर उसे देने लगा। उसने मुँह फिरा लिया और चल दिया। उसने ईष्वर से माँगा था। दुकानदार से नहीं। दूसरों की दया उसे नहीं चाहिए। लेकिन अब वह ईष्वर से कुछ नहीं माँगता।॰॰॰
गिरगिट का सपना
-मोहन राकेष
एक गिरगिट था। अच्छा मोटा ताजा। काफी हरे जंगल में रहता था। रहने के लिए एक घने पेड़ के नीचे अच्छी-सी जगह बना रखी थी उसने। खाने-पीने की कोई तकलीफ नहीं थी। आसपास जीव-जन्तु बहुत मिल जाते थे। फिर भी वह उदास रहता था। उसका ख्याल था कि उसे कुछ और होना चाहिए था। हर जीव का अपना एक रंग था। पर उसका अपना कोई एक रंग था ही नहीं। थोड़ी देर पहले नीले थे, अब हरे हो गए। हरे से बैंगनी। बैंगनी से कत्थई। कत्थई से स्याह।
यह भी कोई जिन्दगी थी? यह ठीक था कि इससे बचाव बहुत होता था। हर देखने वाले को धोखा दिया जा सकता था। खतरे के वक्त जान बचाई जा सकती थी। षिकार की सुविधा भी इसी से थी। पर यह भी क्या कि अपनी कोई एक पहचान ही नहीं! सुबह उठे, तो कच्चे भुट्टे की तरह पीले और रात को सोए तो भुने शकरकन्द की तरह काले! हर दो घण्टे में खुद अपने ही लिए अजनबी!
उसे अपने सिवा हर-एक से ईश्र्या होती थी। पास के बिल में एक साँप था। ऐसा बढ़िया लहरिया था उसकी खाल पर कि देखकर मजा आ जाता था। आसपास के सब चूहे-चमगादड़ उससे खौफ खाते थे। वह खुद भी उसे देखते ही दुम दबाकर भागता था। या मिट्टी के रंग में मिट्टी होकर पड़ा रहता था। उसका ज़्यादातर मन यहीं करता था कि वह गिरगिट न होकर साँप होता, तो कितना अच्छा था! जब मन आया, पेट के बल रेंग लिए। जब मन आया, कुण्डली मारी और फन उठाकर सीधे हो गए।
एक रात जब वह सोया, तो उसे ठीक से नींद नहीं आई। दो-चार कीड़े ज़्यादा निगल लेने से बदहज़मी हो गई थी। नींद लाने के लिए वह कई तरह से सीधा-उलटा हुआ, पर नींद नहीं आई। आँखों को धोखा देने के लिए उसने रंग भी कई बदल लिए, पर कोई फायदा नहीं हुआ। हलकी सी उँघ आती पर फिर वही बेचैनी। आखिर वह पास की झाड़ी में जाकर नींद लाने की एक पत्ती निगल आया। उस पत्ती की सिफारिष उसके एक और गिरगिट दोस्त ने की थी। पत्ती खाने की देर थी कि उसका सिर भारी होने लगा। लगने लगा कि उसका शरीर जमीन के अन्दर धँसता जा रहा है। थोड़ी ही देर में उसे महसूस हुआ जैसे किसी ने उसे जिन्दा जमीन में गाड़ दिया हो। वह बहुत घबराया। यह उसने क्या किया कि दूसरे गिरगिट के कहने में आकर ख्याममख्याह वह पत्ती खा ली। अब अगर वह जिन्दगी भर जमीन के अन्दर ही दफन रहा तो? वह अपने को झटककर बाहर निकालने के लिए जोर लगाने लगा। पहले तो उसे कामयाबी हासिल नहीं हुई। पर फिर लगा कि ऊपर जमीन पोली हो गई है और वह बाहर निकल आया है।
ज्यों ही उसका सिर बाहर निकला और बाहर की हवा अन्दर गई उसने एक और ही अजूबा देखा। उसका सिर गिरगिट के सिर जैसा न होकर साँप के सिर जैसा था। वह पूरा जमीन से बाहर आ गया पर साँप की तरह बल खाकर चलता हुआ। अपने शरीर पर नज़र डाली तो वह लहरिया नज़र आया जो उसे पास वाले साँप के बदन पर देखा था। उसने कुण्डली मारने की कोषिष की तो कुण्डली लग गई। फन उठाना चाहा तो फन उठ गया। वह हैरान भी हुआ और खुष भी। उसकी कामना पूरी हो गई थी। वह साँप बना गया था। साँप बने हुए उसने आसपास के माहौल को देखा। सब चूहे-चमगादड़ उससे खौफ खाए हुए थे। यहाँ तक कि सामने के पेड़ का गिरगिट भी डर के मारे जल्दी-जल्दी रंग बदल रहा था। वह रेंगता हुआ उस इलाके से दूसरे इलाके की तरफ बढ़ गया। नीचे से जो पत्थर-काँटे चुभे उनकी उसने परवाह नहीं की। नया-नया साँप बना था। सो इन सब चीजों को नज़र अंदाज किया जा सकता था। पर थोड़ी दूर जाते-जाते सामने से एक नेवला उसे दबोचने के लिए लपका तो उसने सतर्क होकर फन उठा लिया।
उस नेवले की शायद पड़ोस के साँप से पुरानी लड़ाई थी। साँप बने गिरगिट का मन हुआ कि वह जल्दी से रंग बदल ले पर अब रंग कैसे बदल सकता था? अपनी लहरिया खाल की सारी खूबसूरती उस वक्त उसे एक षिंकजे की तरह लगी। नेवला फुदकता हुआ बहुत पास आ गया था। उसकी आँखें एक चुनौती के साथ चमक रही थी। गिरगिट आखिर था तो गिरगिट ही। वह सामना करने की जगह एक पेड़ के पीछे जा छिपा। उसकी आँखों में नेवले का रंग और आकार बसा था। कितना अच्छा होता अगर वह साँप न बनकर नेवला बन गया होता। तभी उसका सिर फिर भारी होने लगा। नींद की पत्ती अपना रंग दिखा रही थी। थोड़ी देर में उसने पाया कि जिस्म में हवा भर जाने से वह काफी फूल गया है। ऊपर तो गरदन निकल आई है और पीछे को झबरैली पूँछ।
जब वह अपने को झटककर आगे बढ़ा तो लहरिया साँप एक नेवले में बदल चुका था। उसने आसपास नज़र दौड़ाना शुरू किया कि अब कोई साँप नज़र आए तो उसे वह लपक ले। पर साँप वहाँ कोई था ही नहीं। कोई साँप निकलकर आए इसके लिए उसने ऐसे ही उछलना कूदना शुरू किया। कभी झाड़ियों में जाता, कभी बाहर आता। कभी सिर से जमीन को खोदने की कोषिष करता। एक बार जो वह जोर से उछला तो पेड़ की टहनी पर टँग गया। टहनी का काँटा जिस्म में ऐसे गड़ गया कि न अब उछलते बने न नीचे आते। आखिर जब बहुत परेषान हो गया तो वह मानने लगा कि उसने नेवला क्यों बनना चाहा। इससे तो अच्छा था कि पेड़ की टहनी बन गया होता। तब न रेंगने की जरूरत पड़ती न उछलने-कूदने की। बस अपनी जगह उगे हैं और आराम से हवा में हिल रहे हैं।
नींद का एक और झांेका आया और उसने पाया कि सचमुच अब वह नेवला नहीं रहा। पेड़ की टहनी बन गया है। उसका मन मस्ती से भर गया। नीचे की जमीन से अब उसे कोई वास्ता नहीं था। वह जिन्दगी भर ऊपर ही ऊपर झूलता रह सकता था। उसे यह भी लगा जैसे उसके अन्दर से कुछ पत्तियाँ फूटने वाली हों। उसने सोचा कि अगर उसमें फूल भी निकलेगा तो उसका रंग क्या होता और क्या वह अपनी मर्जी से फूल का रंग बदल सकेगा?
पर तभी दो-तीन कौवे उस पर आ बैठे। एक ने उस पर बीट कर दी। दूसरे ने उसे चोंच से कुरेदना शुरू कर दिया। उसे बहुत तकलीफ हुई। उसे फिर अपनी गलती के लिए पष्चाताप हुआ। अगर वह टहनी की जगह कौवा बना होता तो कितना अच्छा था, जब चाहो जिस टहनी पर जा बैठो और जब चाहो हवा में उड़ान भरने लगो।
अभी वह सोच ही रहा था कि कौवे उड़ खड़े हुए। पर उसने हैरान होकर देखा कि कौवों के साथ वह भी उसी तरह उड़ खड़ा हुआ है। अब जमीन के साथ-साथ आसमान भी उसके नीचे था। और वह ऊपर-ऊपर उड़ा जा रहा था। उसके पंख चमकीले थे। जब चाहो उन्हें झपकाने लगो, जब चाहे सीधे कर लो। उसने आसमान में कई चक्कर लगाए और खूब काँय-काँय की। पर तभी नजर पड़ी, नीचे खड़े कुछ लड़कों पर। जो गुलेल हाथ में लिए उसे निषाना बना रहे थे। पास उड़ता हुआ एक कौवा निषाना बनकर नीचे गिर चुका था। उसने डरकर आँखें मूँद लीं। मन ही मन सोचा कि कितना अच्छा होता अगर वह कौवा न बनकर गिरगिट ही बना रहता। पर जब काफी देर बाद भी गुलेल का पत्थर उसे नहीं लगा तो उसने आँखें खोल लीं।
वह अपनी उसी जगह पर था जहाँ सोया था। पंख-वंख अब गायब हो गए थे और वह वही गिरगिट का गिरगिट था। वहीं चूहे चमगादड़ आसपास मण्डरा रहे थे और साँप अपने बिल से बाहर आ रहा था। उसने जल्दी से रंग बदला और दौड़कर उस गिरगिट की तलाष में हो लिया जिसने उसे नींद की पत्ती खाने की सलाह दी थी। मन में शुक्र भी मनाया कि अच्छा है वह गिरगिट की जगह और कुछ नहीं हुआ वरना कैसे उसे गलत सलाह देने वाले गिरगिट को गिरगिटी भाशा में मजा चखा पाता!

॰॰॰
-मनोहर चमोली ‘मनु’

शैक्षिक दख़ल, जनवरी 2018

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By manohar

परिचयः मनोहर चमोली ‘मनु’ जन्मः पलाम,टिहरी गढ़वाल,उत्तराखण्ड जन्म तिथिः 01-08-1973 प्रकाशित कृतियाँ ऐसे बदली नाक की नथः 2005, पृष्ठ संख्या-20, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली ऐसे बदला खानपुरः 2006, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। सवाल दस रुपए का (4 कहानियाँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। उत्तराखण्ड की लोककथाएं (14 लोक कथाएँ)ः 2007, पृष्ठ संख्या-52, प्रकाशकः भारत ज्ञान विज्ञान समिति,नई दिल्ली। ख्खुशीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून बदल गया मालवाः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून पूछेरीः 2009,पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः राष्ट्रीय पुस्तक न्यास,नई दिल्ली बिगड़ी बात बनीः मार्च 2008, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून अब बजाओ तालीः 2009, पृष्ठ संख्या-12, प्रकाशकः राज्य संसाधन केन्द्र (प्रौढ़ शिक्षा) 68/1,सूर्यलोक कॉलोनी,राजपुर रोड,देहरादून। व्यवहारज्ञानं (मराठी में 4 कहानियाँ अनुदित,प्रो.साईनाथ पाचारणे)ः 2012, पृष्ठ संख्या-40, प्रकाशकः निखिल प्रकाशन,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। अंतरिक्ष से आगे बचपनः (25 बाल कहानियाँ)ः 2013, पृष्ठ संख्या-104, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-40-3 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। कथाः ज्ञानाची चुणूक (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः उलटया हाताचा सलाम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पुस्तके परत आली (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः वाढदिवसाची भेट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सत्पात्री दान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मंगलावर होईल घर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवक तेनालीराम (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः असा जिंकला उंदीर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पिंपलांच झाड (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरं सौंदर्य (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः गुरुसेवा (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खरी बचत (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः विहिरीत पडलेला मुकुट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शाही भोजनाचा आनंद (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कामाची सवय (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः शेजायाशी संबंध (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः मास्क रोबोट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः फेसबुकचा वापर (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः कलेचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः सेवा हाच धर्म (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः खोटा सम्राट (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः ई साईबोर्ग दुनिया (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। कथाः पाहुण्यांचा सन्मान (मराठी में अनुदित)ः 2014, पृष्ठ संख्या-16, प्रकाशकः नारायणी प्रकाशन, कादंबरी,राजारामपुरी,8वीं गली,कोल्हापूर,महाराष्ट्र। जीवन में बचपनः ( 30 बाल कहानियाँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-120, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-81-86844-69-4 प्रकाशकः विनसर पब्लिशिंग कम्पनी,4 डिसपेंसरी रोड,देहरादून। उत्तराखण्ड की प्रतिनिधि लोककथाएं (समेकित 4 लोक कथाएँ)ः 2015, पृष्ठ संख्या-192, प्रकाशकः समय साक्ष्य,फालतू लाइन,देहरादून। रीडिंग कार्डः 2017, ऐसे चाटा दिमाग, किरमोला आसमान पर, सबसे बड़ा अण्डा, ( 3 कहानियाँ ) प्रकाशकः राज्य परियोजना कार्यालय,उत्तराखण्ड चित्र कथाः पढ़ें भारत के अन्तर्गत 13 कहानियाँ, वर्ष 2016, प्रकाशकः प्रथम बुक्स,भारत। चाँद का स्वेटरः 2012,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-40-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बादल क्यों बरसता है?ः 2013,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-81038-79-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। जूते और मोजेः 2016, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-97-6 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। अब तुम गए काम सेः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-88-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। चलता पहाड़ः 2016,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-84697-91-4 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। बिल में क्या है?ः 2017,पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-86808-20-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। छस छस छसः 2019, पृष्ठ संख्या-24,पिक्चर बुक, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-89202-63-2 प्रकाशकः रूम टू रीड, इंडिया। कहानियाँ बाल मन कीः 2021, पृष्ठ संख्या-194, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-91081-23-2 प्रकाशकः श्वेतवर्णा प्रकाशन,दिल्ली पहली यात्रा: 2023 पृष्ठ संख्या-20 आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-5743-178-1 प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत कथा किलकारी: दिसम्बर 2024, पृष्ठ संख्या-60, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-92829-39-0 प्रकाशक: साहित्य विमर्श प्रकाशन कथा पोथी बच्चों की: फरवरी 2025, पृष्ठ संख्या-136, विनसर पब्लिकेशन,देहरादून, उत्तराखण्ड, आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-93658-55-5 कहानी ‘फूलों वाले बाबा’ उत्तराखण्ड में कक्षा पाँच की पाठ्य पुस्तक ‘बुराँश’ में शामिल। सहायक पुस्तक माला भाग-5 में नाटक मस्ती की पाठशाला शामिल। मधुकिरण भाग पांच में कहानी शामिल। परिवेश हिंदी पाठमाला एवं अभ्यास पुस्तिका 2023 में संस्मरण खुशबू आज भी याद है प्रकाशित पावनी हिंदी पाठ्यपुस्तक भाग 6 में संस्मरण ‘अगर वे उस दिन स्कूल आते तो’ प्रकाशित। (नई शिक्षा नीति 2020 के आलोक में।) हिमाचल सरकार के प्रेरणा कार्यक्रम सहित पढ़ने की आदत विकसित करने संबंधी कार्यक्रम के तहत छह राज्यों के बुनियादी स्कूलों में 13 कहानियां शामिल। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा पहली में कहानी ‘चलता पहाड़’ सम्मिलित। राजस्थान, एस.सी.ई.आर.टी द्वारा 2025 में विकसित हिंदी पाठ्यपुस्तक की कक्षा चौथी में निबंध ‘इसलिए गिरती हैं पत्तियाँ’ सम्मिलित। बीस से अधिक बाल कहानियां असमियां और बंगला में अनुदित। गंग ज्योति पत्रिका के पूर्व सह संपादक। ज्ञान विज्ञान बुलेटिन के पूर्व संपादक। पुस्तकों में हास्य व्यंग्य कथाएं, किलकारी, यमलोक का यात्री प्रकाशित। ईबुक ‘जीवन में बचपन प्रकाशित। पंचायत प्रशिक्षण संदर्शिका, अचल ज्योति, प्रवेशिका भाग 1, अचल ज्योति भाग 2, स्वेटर निर्माण प्रवेशिका लेखकीय सहयोग। उत्तराखण्ड की पाठ्य पुस्तक भाषा किरण, हँसी-खुशी एवं बुराँश में लेखन एवं संपादन। विविध शिक्षक संदर्शिकाओं में सह लेखन एवं संपादन। अमोली पाठ्य पुस्तक 8 में संस्मरण-खुशबू याद है प्रकाशित। उत्तराखण्ड के शिक्षा विभाग में भाषा के शिक्षक हैं। वर्तमान में: रा.इं.कॉ.कालेश्वर,पौड़ी गढ़वाल में नियुक्त हैं। सम्पर्कः गुरु भवन, पोस्ट बॉक्स-23 पौड़ी, पौड़ी गढ़वाल.उत्तराखण्ड 246001.उत्तराखण्ड. मोबाइल एवं व्हाट्सएप-7579111144 #manoharchamolimanu #मनोहर चमोली ‘मनु’

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