आम की टोकरी‘
छह साल की छोकरी,
भरकर लाई टोकरी।
टोकरी में आम हैं,
नहीं बताती दाम है।
दिखा-दिखाकर टोकरी,
हमें बुलाती छोकरी।
हम को देती आम है,
नहीं बुलाती नाम है।
नाम नहीं अब पूछना,
हमें आम है चूसना।
यह कविता रामकृष्ण शर्मा खद्दर जी की है। यह कविता कक्षा पहली के बच्चे 2006 से लगातार पढ़ रहे हैं। साल 2018 से उत्तराखण्ड के बच्चे भी अब इस कविता को पढ़ेंगे। यह कविता भारत के राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा तैयार की गई किताब रिमझिम 1 का हिस्सा है। यह कविता पाठ 3 के क्रम में बच्चे पढ़ रहे हैं।
इस कविता की खास बात यह है कि इसकी पँक्तियों से ‘आ’ और ‘क’ को परिचित कराने के लिए इसे यहाँ विशेष तौर पर रखा गया है। बताता चलूँ कि इससे पहले आए दो पाठों से बच्चे ‘न‘,‘म’,‘अ‘,‘ठ‘,‘ए‘,‘झ‘,‘ल‘,‘ड‘,‘छ‘,‘ई‘ से परिचित हो रहे हैं।
अब कविता पर बात करते हैं। इस कविता में जिस छोकरी की बात की जा रही है हो सकता है कि वह स्कूल न जाती हो। घर की परिस्थितियों के चलते वह फलों के मौसम में फल बेचती हो। यह भी हो सकता है कि वह अनाथ हो। उसे खुद ही अपना नाम न पता हो। यह भी संभव है कि यह लड़की जिसका नाम पाठक बच्चे नहीं जानते हैं उनके घर के आस-पास आती हो। उनके गांव-शहर या मुहल्ले में आती हो। यह भी संभव है कि ये पाठक बच्चे जिस स्कूल में पढ़ते हैं, यह छोकरी स्कूल समय में, मध्यांतर में या छुट्टी के समय स्कूल के आस-पास आम बेचने मिल जाती होगी।
अब दो बातें और-
एक-क्या बच्चे पाठ्यपुस्तक में पाठ के बहाने उन बच्चों के बारे में न सोचें, जो उन्हें आम जीवन में अपने आस-पास दिखाई देते हैं? जो बाजार में, मेलों में, दुकानों में, सड़कों में कुछ न कुछ सामान बेचते नज़र आते हैं!
दो-क्या बच्चे उन बच्चों के बारे में चर्चा न करें, जो उनकी उम्र के हैं और स्कूल नहीं आते?
अब आते हैं इस छोकरी शब्द पर। इस शब्द पर कैसी आपत्ति। शब्द क्या हैं? ध्वनि मात्र ही तो हैं। हमें यह समझना होगा कि बहुत सारे नाम,संबोधन और संज्ञा कई भाषाओं में एक समान हो सकते हैं तो यही कई भाषाओं में गाली के रूप में प्रयोग लाए जाते होंगे। यह कोई जानवरों के मुंह से निकली हुई ध्वनि नहीं हैं कि भारत की बिल्ली हो या जापान की म्याऊँ ही बोलेगी। कुत्ता कहीं का भी हो वो भौंकेगा।
भाषाओं में शब्द और शब्दों से बने वाक्य संदर्भों के साथ विभिन्न अर्थ देने की सामर्थ्य रखते हैं। यह कौन नहीं जानता!
अब यह बताना भी जरूरी होगा कि बुनियादी स्कूलों में खासकर पहली कक्षा में अवलोकन, समझ, अभिनय करते हुए बोलना,समझ कर बोलना,घर से विद्यालय तक आते-जाते दृश्य चित्रों से जुड़ती हुई पठन सामग्री पढ़ना, बच्चों के क्रियाकलापों से खुद को जोड़ना, स्थानीय परिवेश व वातावरण को गहरे से समझना हिन्दी भाषा की पाठ्यचर्या का हिस्सा हैं। इस लिहाज से यह कविता बेहद उपयुक्त, सारगर्भित और बच्चों के जीवन से जुड़ी है। आखिर संवैधानिक मूल्य भी तो यही कहते हैं कि हम केवल अपनी ही न सोंचे। हाशिए के जीवन को भी महसूस करें। संवेदना के स्तर पर चेतना भी बढ़ाएं।
कल दो अप्रैल को मैंने यह कविता स्कूल में बच्चों के साथ साझा की। मैंने इसे श्यामपट्ट पर लिखा। पहले मैंने इसे सस्वर पढ़ा। फिर बच्चों से कहा कि इसे एक साथ पढ़ें। बच्चों ने एक साथ इसे पढ़ा। मैंने कहा अब इसे कॉपी पर लिखिए। बच्चांे ने कविता कॉपी पर लिखी। फिर सबसे कहा गया कि मौन पठन करिए। बच्चों को कुछ देर कविता से जूझने दिया गया।
अब बगैर भूमिका के और भाव के मैंने बच्चों से कहा कि कविता को पढ़कर समझकर कुछ सवाल बनाने हैं। अपनी-अपनी कॉपी पर। ऐसे सवाल नहीं बनाने हैं कि जवाब एक जैसा आया।
मैंने उदाहरण दिया कि एक जैसा जवाब के दो उदाहरण देता हूँ। एक जैसा जवाब के दो सवाल मैंने श्यामपट्ट पर लिख दिए। वह यह थे-
सवाल-छोकर कितने साल की है?
सवाल-टोकरी में क्या है?
मैंने बात को विस्तार दिया कि हमें ऐसे सवाल नहीं बनाने हैं जिसका एक जैसा जवाब हो। हमें ऐसे सवाल बनाने हैं जिनके जवाब मन के जवाब हों। जवाब देने वाले को मन से सोचना पड़े। अनुमान और कल्पना के घोड़े दौड़ाकर जवाब खोजना पड़े।
मुझे लग रहा था कि दस पंक्तियों की इस कविता में तीन-चार सवाल ही बन सकेंगे। सवालों में दोहराव अधिक होगा। लेकिन जो सवाल बच्चों ने बनाए वह अद्भुत थे। कुछ खास सवाल (अलग-अलग अनुभव वाले) यहां दिए जा रहे हैं-
एक-छोकरी का क्या नाम रहा होगा?
दो-टोकरी में कितने आम रहे होंगे?
तीन-वह बच्चों को नाम से क्यों नहीं बुला रही थी?

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By manohar

7 thoughts on “कोई शब्द बुरा कैसे हो सकता है: कविता के बहाने”
  1. कितनी सुंदर व्याख्या की है।
    अति सुंदर

    1. जी आपका आभार ! आप संभवतः इस ब्लॉग की पहली पाठक हो गई हैं। सादर

  2. सुंदर कविता उपयोगी व्याख्या के साथ। बधाई।

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