तब गिनती एक से नौ ही हुआ करती थी। एक दिन वे बहस करने लगे। दो, चार, छह, आठ अलग हो गए। एक, तीन, पांच, सात और नौ हैरान थे।

अंक एक बोला-‘‘मेलजोल में ही ताकत है।’’

आठ ने तुनक कर कहा-‘‘हमारा जोड़ बढ़िया है। हिसाब में भी हम आसान हैं। दो, चार, छह, आठ। तुम सब बेमेल हो। विषम हो। हम सम हैं।’’

तीन बोला-‘‘हम संख्या में पांच हैं। तुम चार हो।’’

चार ने हिसाब लगाया-‘‘दो, चार, छह, आठ।’’

सात बोला-‘‘गिन लिया? हमारा जोड़ पच्चीस है। तुम सारे अपनों को जोड़ों तो।’’ आठ ने जोड़ा-‘‘दो,चार,छह और आठ हुए बीस। अरे !’’


अचानक नौ कहने लगा-यदि मैं तुम सम संख्याओं में मिल जाता हूं तो तुम्हारा जोड़ उनतीस हो जाएगा। इस तरह मेरे साथियों का जोड़ सोलह ही रह जाएगा। हाहाहा।’’

आठ ने नौ से कहा-‘‘घमण्ड मत करो। तुम हम सबसे बड़े हो। लेकिन तभी बड़े हो, जब हम छोटे हैं। अगर हम ही न होते तो तुम अकेले क्या कर लेते। हम हैं तो तब तुम हो।’’

एक बोला-‘‘आठ ने सही कहा। हमें छोटे-बड़े और सम-विषम के फेर में नहीं रहना चाहिए।’’

नौ ने एक से कहा-‘‘छोटे हो। ज़बान चलाते हो? मैं सबसे बड़ा हूं। मैं तुमसे नौ गुना बड़ा हूं। समझे।’’

एक को न जाने क्या सूझा। उसने अपने दांयी ओर एक गोल पत्थर रख लिया।

नौ ने पूछा-‘‘ये क्या है?’’ एक ने कहा-‘‘ये नया अंक है। इसे शून्य कहेंगे। शून्य यानि ज़ीरो। इसे मिलाकर मैं एक से बढ़कर दस हो गया हूं। दस यानि दहाई। तुमसे एक कदम आगे। कुछ समझे?’’

एक से आठ तक की संख्या वाले पत्थर घबरा गए। सब संख्या एक से मिल गए। नौ अकेला रह गया। वह दौड़ा। फिर सबसे मिल गया। अब गिनती नौ से आगे बढ़ गई। दस, ग्यारह, बारह,…सौ…एक हजार एक….दस हजार एक…..एक लाख एक….। गिनती आगे बढ़ रही है। बढ़ती जा रही है। ज़रा गिन कर तो देखो.

मनोहर चमोली ‘मनु’

Loading

By manohar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *