तिमिरा गुप्ता कृत किताब ‘पिशी और मैं’ एक शानदार किताब है। एकल कहानी की यह पुस्तक उन बच्चों के लिए तैयार की गई है जो सरल शब्द पहचानते हैं और मदद से नए शब्द पढ़ सकते हैं।

इस किताब में बच्चों की आवाजे़ं हैं। बच्चों की दुनिया है। बच्चों का बाल स्वभाव वाक्य-दर-वाक्य में झलकता है।

इस किताब में कई ख़ूबियाँ हैं। आवरण पेज ही पाठक को अपनी ओर खींचता है। चित्र ऐसे हैं जैसे किताब से बाहर आकर बोलने-चलने लगेंगे। कहानी में एक छुटकू है। वह अपनी बुआ के साथ पैदल घूमने जाता है। उसे घूमना अच्छा लगता है। सबसे बड़ी बात है कि इस घूमने में जो पूरा दृश्य है उसे बच्चों की नज़र से देखा गया है।

चूँकि छुटकू का कोई नाम नहीं है। वह अपने अनुभव साझा कर रहा है तो बाल पाठक सीधे जुड़ेंगे। छुटकू जब यह बताता है कि जब पिशी मेरा हाथ पकड़ कर चलती हैं तो मुझे अच्छा लगता है। लेकिन जब वह हाथ छोड़ देती हैं, तो और भी ज़्यादा अच्छा लगता है।

पाठक अनायास ही अनुमान लगा लेते हैं कि छुटकू अभी छोटा बच्चा है। यहाँ-वहाँ अकेले नहीं जाता है। इतना बड़ा भी नहीं है कि खुद जा सके। एक बात और है। कहानी में छुटकू बताता है कि ‘पैदल सैर करने जाना मुझे बहुत अच्छा लगता है। ख़ासतौर पर अपनी पिशी के साथ ! अपनी बुआ को मैं पिशी कहता हूँ।’’
कहानी सिर्फ और सिर्फ बुआ का पता देती है। यह भी संभव है कि छुटकू अपनी बुआ के साथ रहता हो। यह भी हो सकता है कि छुटकू की बुआ उनके साथ रहती हो। इस तरह की मशक्कत पाठक स्वयं करें। यह अच्छी बात है। छुटकू कहीं भी अपने माता-पिता का ज़िक्र नहीं कर रहा है। यह भी संभव है कि कहानी सिर्फ और सिर्फ सैर-सपाटे पर बात कर रही है। उसी के इर्द-गिर्द है। ऐसी कहानियाँ ज़्यादा पसंद की जा सकती है। बहुत सारे पात्रों का झमेला कई बार अच्छा भी नहीं लगता।

छुटकू की तरह बच्चे भी अपनी जेबों में-बस्ते में, घर के किसी कोने में-डिब्बे में बहुत सारी चीज़ें रखते हैं। ऐसी चीज़ें जिनका कोई तुक हो या न हो। बड़ों की नज़र में वह कबाड़ हो। अनुपयोगी चीज़ें हों। इस कहानी में भी ऐसा कुछ है।

छुटकू बताता है कि सैर-सपाटा के दौरान वह आवार कुत्तों से, बिल्ली से, चूहे से, कौए से, पेड़ से उनका हाल-चाल पूछते हैं। वह पत्थर इकट्ठा करता है। अलग-अलग तरह के पत्थर। बहुत छोटे पत्थर भी। सैर से लौटते समय छुटकू की जेबें भर जाती हैं। बाज़ार में अज्जी दुकानदार टोकरी से उसे एक मटर की फली देती है। दिलीप भाऊ दुकान से उसे एक क्लिप देते हैं। निर्मल दीदी उसे एक स्टिकर देती हैं। दर्जी अंजुम आंटी उसे एक बटन देती हैं। घर लौटकर वह जेबों से इकट्ठा चीज़ों को अपने पीले डिब्बे में रखता है।

कहानी सिर्फ लेने और लेने पर केन्द्रित नहीं हैं। अंत में छुटकू कहता है कि ‘‘अगर मुझे जेब में वो नन्हा-सा पत्थर मिल जाए, तो मैं वह अपनी पिशी को दे दूँगा।’’

बहरहाल, पूरी कहानी छुटकू खुद कह रहा है। एक तरह से संस्मरण विधा में है तो छुटकू के वयवर्गानुसार भाषा और भी सरल हो सकती है। हाथ पकड़कर घूमने वाले बच्चे के मुख से नन्हा-सा, ख़ासतौर पर जैसे शब्द हैरान करते हैं।

वहीं चित्रकार राजीव आइप एक एनिमेटर हैं। प्रख्यात चित्रकार हैं। तूलिका, कथा, रेड टर्टल जैसे नामचीन प्रकाशकों के लिए काम करते रहे हैं। वे टीवी और इन्टरनेट के लिए एनिमेशन फ़िल्में तैयार करते रहे हैं। इस किताब को बालमन की ध्वनि बनाने में कारगर भूमिका राजीव आइप के चित्र हैं। बीस चित्रों को राजीव आइप ने बड़े मन से बनाया है।

तिमिरा बच्चों की दुनिया में रहती है। नाटक, कहानी पाठ के साथ दृश्यकला में वह पारंगत है।

सबसे बड़ी बात है कि इस घूमने में जो पूरा दृश्य है उसे बच्चों की नज़र से देखा गया है। कई चित्र व्यक्तिपरक नहीं वस्तुपरक हैं। चित्रकार ने कहानी के असल मन्तव्य को क्या खूब पकड़ा है।

किताब : पिशी और मैं
लेखक : तिमिरा गुप्ता
चित्रांकन : राजीव आइप
मूल्य : 55
प्रकाशक : प्रथम बुक्स
प्रकाशन वर्ष : 2018
तीसरा संस्करण : 2019
प्रस्तुति : मनोहर चमोली मनु
सम्पर्क : 7579111144
मेल : chamoli123456789@gmail.com

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By manohar

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