-मनोहर चमोली ‘मनु’


बहुत पुरानी बात है। मछली का मन करता तो वह दूर आसमान में जा उड़ती। तैरने का मन करता तो नदी के अंदर चली जाती। एक दिन बगुले का जोड़ा कहीं जाने लगा। बगुला मछली से बोला-‘‘हमारे अंडों का ध्यान रखना। हम दाना चुग कर आते हैं।’’ वे जब लौट कर आए तो मछली आसमान में उड़ गई। दोपहर हुई तो मोर ने मछली से कहा-‘‘मोरनी न जाने कहां चली गई। उसे खोजने जाना होगा। हमारे अंडों का ध्यान रखना।’’ उनके लौटने तक मछली ने अंडों की रखवाली की। शाम हुई तो चूहिया ने मछली को पुकारा-‘‘मैं टहलने जा रही हूं। मेरे बच्चे अकेले हैं।’’ मछली पहरा देने लगी। चूहिया रात को लौटी। मछली जाने को हुई तो गिलहरी ने आवाज लगाई-‘‘अमरूद पक गए होंगे तो मुझे बताना।’’ मछल उड़ी और अमरूद के पेड़ के फल देख आई। मछली ने गिलहरी को बताया-‘‘अमरूद पक चुके हैं।’’ मछली उड़ी तो उसे एक सांप ने रोक लिया। पूछा-‘‘कहां जा रही हो?’’

मछली ने जवाब दिया-‘‘थक गई हूं। जल में तैरने जा रही हूं।’’ सांप ने हंसते हुए कहा-‘‘आज की थकान तो दूर हो जाएगी। मगर कल क्या होगा?’’ मछली ने चौंकते हुए पूछा-‘‘मतलब?’’ सांप ने जवाब दिया-‘‘मतलब ये कि हर कोई तुम पर रौब जमाता है। मोर, बगुले, चूहे, गिलहरी तक तुम से अपना काम करा लेते हैं। क्यों?’’ मछली सोच में पड़ गई।


सुबह हुई। बगुला का जोड़ा मछली के पास आया और वही बात कहकर उड़ चला। मछली को सांप की बात याद थी। उसने मुंह बनाया-‘‘हुंअ। मैं नदी में तैरने जा रही हूं। शाम तक बाहर न आऊंगी।’’ बस फिर क्या था। सांप को इसी पल का इंतजार था। बगुलों के लौटने से पहले वह अंडे खा चुका था। दोपहर हुई तो मोर ने मछली से कहा-‘‘मोरनी न जाने फिर कहां चली गई। मैं उसे खोजने जा रहा हूं। अंडों का ध्यान रखना।’’ मछली ने मोर की बात को अनसुना कर दिया। वह घने पेड़ के पत्तों के पीछे आराम करने लगी। सांप ने मोरनी के अंडों को चट कर डाला। शाम हुई तो चूहिया ने मछली को पुकारा। रोज़ाना की तरह वह टहलने चली गई। मछली उड़ी और आसमान में गायब हो गई। सांप चूहिया के बच्चों को निगल गया। रात हुई तो गिलहरी ने मछली से कहा-‘‘अमरूद पक गए हैं। मैं भी कुछ अमरूद खा आती हूं। मेरे बच्चों का ध्यान रखना।’’ गिलहरी के जाते ही मछली ने नदी में गोता लगाया। वह तैरती हुई नदी के दूसरे तट पर जा पहुंची। सांप ने गिलहरी के बच्चों को भी अपना निवाला बना लिया।


सुबह हुई तो सभी ने मछली को घेर लिया। बगुला चिल्लाया-‘‘मेरे अंडे कहां हैं?’’ चुहिया और गिलहरी ने अपने बच्चों के बारे में पूछा। मछली ने जवाब दिया-‘‘मुझे क्या पता?’’ बगुले को गुस्सा आ गया। उसने मछली को दबोच लिया। मछली ने डरते-डरते सारा किस्सा सुनाया। किस्सा सुनकर चुहिया बोली-‘‘एक सांप की बातों में आकर तुमने हमारा भरोसा तोड़ा है। मैं तुम्हें उड़ने लायक नहीं छोड़ूंगी।’’ चूहिया ने मछली के पंख कुतर डाले। गिलहरी ने कहा-‘‘आज से तुम उड़ नहीं पाओगी। अब तुम जल में ही रहोगी।’’ मछली छिटक कर नदी में जा छिपी। बगुला बोला-‘‘कहां जाती हो। मैं तुम्हें पानी में भी नहीं छोड़ंगा।’’ तभी से बगुला मछली की ताक में रहता है। वहीं मछली पंख होते हुए भी उड़ नहीं पाती है।
॰॰॰

Loading

By manohar

2 thoughts on “अब मछली नहीं उड़ती”

Leave a Reply to Krishna Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *